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- HDFC HDFC Bank Merger; History, Founder, Market Cap, And Everything You Need To Know
2 घंटे पहले
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HDFC…एक ऐसा बैंक जो अब देश का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक बन गया है। 1994 में यह पहला बैंक था जिसे RBI ने प्राइवेट बैंक के रूप में मंजूरी दी थी।
बैंक की शुरुआत HDFC यानी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन के सहायक के रूप में की गई थी। अब बैंक मार्केट कैपिटलाइजेशन और ग्राहकों की संख्या दोनों में ही फिलहाल यह नंबर वन है। मार्केट कैप 14.6 लाख करोड़ रुपए हो गया है। वहीं, कुल 12 करोड़ लोग इसके ग्राहक हैं।
HDFC बैंक अब रिलायंस इंडस्ट्रीज के बाद देश की दूसरी सबसे ज्यादा वैल्यूएशन वाली फर्म बन गई है। इसी के साथ यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बैंक बन गया है।
यह सब हुआ एक मर्जर की वजह से। दरअसल 1 जुलाई 2023 को HDFC बैंक और HDFC लिमिटेड का विलय हो गया। इसे लेकर अब बैंक चर्चा की हर तरफ चर्चा हो रही है। आज के मेगा एम्पायर में जानिए HDFC बैंक के एम्पायर बनने की कहानी…
हसमुख पारेख ने हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन यानी HDFC की नींव रखी
HDFC बैंक की कहानी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन से शुरू होती है। हसमुख पारेख ने इसकी शुरुआत की थी। 1911 में वो एक गरीब जैन परिवार में पैदा हुए थे। उनका बचपन पिता के साथ सूरत के एक चॉल में बीता।
लेकिन मेहनत के बल पर उन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का फेलोशिप मिला। लंदन में पढ़ाई पूरी करने के बाद वो भारत लौट आए और बॉम्बे के सेंट जेवियर्स कॉलेज में एडमिशन लिया।
1956 में उन्होंने ICICI बैंक में डिप्टी जनरल मैनेजर के तौर पर जॉइन किया। फिर चेयरमैन बने और 1972 में मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर पहुंचे। हंसमुख पारेख 1970 तक देश के बड़े बैंकर्स में गिने जाने लगे।
1976 में बैंक से रियरमेंट के बाद वो बोर्ड के चेयरमैन बने रहे। हसमुख पारेख को लोगों के बीच रहना पसंद था। यहीं से उन्हें महसूस हुआ कि भारत में लोगों के लिए घर बनाना कितनी बड़ी चुनौती है। इस समस्या के समाधान के लिए ICICI बैंक से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने काम करना शुरू किया।
66 साल की उम्र में उन्होंने हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन यानी HDFC की शुरुआत की। यह देश की पहली हाउसिंह फाइनेंस कंपनी थी। यह पहली कंपनी थी जिसने भारत के लोगों को होम लोन की सुविधा दी।
चाचा हसमुख पारेख के बुलाने पर दीपक पारेख आए थे भारत
1990 के दशक में हसमुख के भतीजे दीपक पारेख अरब में मैनहट्टन बैंक को इंचार्ज के रूप में जॉइन करने वाले थे। तब हंसमुख पारेख ने उन्हें फोन कर ऐसा कुछ कहा कि दीपक ने मैनहट्टन बैंक का ऑफर ठुकरा दिया। वो लौटकर भारत आ गए।
हसमुख पारेख ने 34 साल के अपने भतीजे दीपक पारेख से कहा कि भारत को तुम्हारी फाइनेंस के फिल्ड में काबिलियत की जरूरत है। तब दीपक पारेख असमंजस में भी फंस गए थे।
एक तरफ उनके पास ऊंची सैलेरी पर अमेरिका के टॉप बैंक में नौकरी थी तो दूसरी तरफ वहां से आधी सैलरी पर भारत में एक नई शुरुआत। पर दीपक पारेख ने चुनौती स्वीकार की और भारत वापस लौट आए।
1978 में दीपक पारेख ने भारत आकर जनरल मैनेजर की हैसियत से HDFC जॉइन किया। यह वो समय था जब देश में होम लोन लेना बुरी बात मानी जाती थी। लोग सिर्फ बचत का पैसा जमा करने के लिए ही बैंक जाते थे।
बैंक भी कड़ी शर्तों के साथ सिर्फ बिजनेस के लिए ही लोन देते थे। और ब्याज दर भी ऊंची रहती थी। तब 16 से 17 फीसदी ब्याद दर सामान्य था। घर बनाने के लिए बैंक लोन देते ही नहीं थे।
ऐसे समय में खुद हसमुख पारेख और दीपक पारेख को होन लोन के लिए कस्टमर्स ढूंढने पड़े। लेकिन HDFC ने आसान प्रक्रिया और सस्ते दरों से लोगों का भरोसा जीता।
1991 के आर्थिक उदारीकरण से निकला था HDFC बैंक के बनने का रास्ता
1990 से ही देश की अर्थव्यवस्था की सेहत बिगड़ने लगी थी। देश से निर्यात बहुत कम हो गया था पर इसके उलट आयात बढ़ता ही जा रहा था। इस आयात की कीमत चुकाने में सरकार का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की कगार पर पहुंच गया।
तब देश के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार का बेड़ा उठाया। और इकोनॉमिक रिफॉर्म्स लागू किए। ये रिफॉर्म था अर्थव्यवस्था को निजी कंपनियों के लिए खोलना। मतलब किसी भी सेक्टर में निजी कंपनियां व्यापार कर सकती थी। इसी में से एक बैंकिंग सेक्टर भी था।
इसके तुरंत बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐसे प्राइवेट बैंक की तलाश में लग गई, जिन्हें लाइसेंस दिया जा सके। एक वजह बैंकिंग सेक्टर में हेल्दी कॉम्पेटिशन बनाए रखना भी था।
दूसरी तरफ इसी समय HDFC हाउसिंग फाइनेंस के चेयरमैन दीपक पारेख ने बैंक खोलने की इच्छा हुई। इसके लिए वो सालों के अनुभव वाले मंझे हुए बैंकर्स की तलाश करने लगे। उनकी पहली तलाश थे तब सिंगापुर में सिटी बैंक के सीईओ आदित्य पुरी।
आदित्य पुरी ने देश भर के बेहतरीन बैंकर्स को जोड़कर एक टीम बनाई
आदित्य पुरी अपनी हाई इनकम जॉब और लग्जरी लाइफ-स्टाइल छोड़कर मुंबई आ गए। दीपक पारेख ने उनसे वादा किया कि यह काम नई चुनौतियों से भरा होगा। यहां से आदित्य पुरी अपनी टीम के लिए देश के टॉप बैंकर्स की तलाश में लग गए।
आखिरकार 1994 में HDFC हाउसिंग फाइनेंस डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की 100 करोड़ रुपए की कैपिटल इंन्वेस्टेमेंट के साथ बैंक शुरू किया। अब बारी थी एक बैंक के विजन को धरातल पर उतारने की। इसके लिए सिटी बैंक से इस्तीफा देने के दो महीने तक आदित्य पुरी बैंक की शुरुआती स्ट्रैटजी बनाने में लगा दिया।
साल दर साल बैंक मार्केट रिसर्च के साथ जिन सुविधाओं की लोगों को जरूरत होती थी उसे पूरा करता गया। यही HDFC बैंक की सफलता का राज भी बताया जाता है।
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