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RR को फाइनल में पहुंचाने वाले टॉप-5 फैक्टर्स: इससे तगड़ा ओपनर किसी के पास नहीं, टीम का लेग स्पिनर पर्पल कैप की रेस में सबसे आगे

अहमदाबाद4 मिनट पहले

राजस्थान रॉयल्स 14 साल के इंतजार के बाद IPL फाइनल खेलने जा रही है। टीम ने दूसरे क्वालिफायर मुकाबले में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु को एकतरफा अंदाज में 7 विकेट से हरा दिया। इससे टीम ने लीग राउंड में 14 में से 9 मुकाबलों में जीत दर्ज करते हुए पॉइंट्स टेबल में दूसरा स्थान हासिल किया था। चलिए जान लेते हैं रॉयल्स की उन टॉप-5 स्ट्रेंथ के बारे में जिनकी बदौलत टीम ने खिताबी मुकाबले में जगह बनाई है।

1. जोस बटलर की शानदार बल्लेबाजी
इंग्लैंड के दिग्गज बल्लेबाज जोस बटलर ने राजस्थान की बल्लेबाजी का बीड़ा शुरुआत से अपने कंधों पर उठा रखा था। दूसरे ओपनर के तौर पर यशस्वी जायसवाल और देवदत्त पडिक्कल के बैटिंग पोजिशन में परिवर्तन होता रहा, बटलर को लेकर किसी किस्म का कन्फ्यूजन नहीं था। जो विदेशी खिलाड़ी स्पिन को शानदार तरीके से खेलता है, वह IPL में कतई फेल नहीं होता। बटलर इस मामले में शानदार रहे।

16 मुकाबलों में 824 रन जड़ चुके बटलर के सामने कोई भी गेंदबाज नहीं टिक सका। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के खिलाफ बटलर ने हसरंगा के खिलाफ शुरुआत में सतर्कता बरती, लेकिन बाद में उन्हें भी नहीं बख्शा। यह साफ नजर आ रहा था कि बटलर हर बार आखिरी तक टिक कर टीम को बड़े स्कोर तक ले जाने का प्रयास कर रहे थे। फाइनल में उनसे एक और धमाकेदार पारी की उम्मीद रहेगी।

2. चहल की फिरकी के आगे बेबस हुई प्रतिद्वंद्वी टीमें
आखिरी टी-20 वर्ल्ड कप में युजवेंद्र चहल को टीम इंडिया में शामिल नहीं किया गया था। चहल ने चयनकर्ताओं को जवाब IPL 2022 के प्रदर्शन से दिया। 26 विकेट चटका चुके चहल के पास फाइनल मुकाबले में पर्पल कैप जीतने का सुनहरा मौका होगा।

चहल को विश्व क्रिकेट में दिलेर गेंदबाज के तौर पर जाना जाता है। वह बल्लेबाजों के खिलाफ गेंद को हवा में छोड़ने से परहेज नहीं करते। बड़े शॉट के लालच में जब-जब बैटर मिसटाइम करता है, उसका फायदा चहल को विकेट के रूप में मिलता है।

3. बॉलिंग में वेराइटी सबसे ज्यादा
लेग स्पिनर के रूप में युजवेंद्र चहल और ऑफ स्पिनर के तौर पर आर अश्विन राजस्थान का स्पिन डिपार्टमेंट संभाल रहे हैं। लेफ्ट आर्म स्विंग बॉलर ट्रेंट बोल्ट, लेफ्ट आर्म फास्ट बॉलर मकॉय और राइट आर्म फास्ट बॉलर प्रसिद्ध कृष्णा के तौर पर तेज गेंदबाजी में भी राजस्थान के पास वैरायटी नजर आती है। इसका लाभ हुआ कि विरोधी बल्लेबाज कभी भी एक तरह के 2 गेंदबाजों को नहीं खेल रहे थे। नतीजा ये हुआ कि बल्लेबाज RR की बॉलिंग आक्रमण के सामने सेटल नहीं हो पा रहे थे।

गेंदबाजी में वैरिएशन के कारण तमाम बैटर्स के लिए उन्हें पिक करना मुश्किल हो रहा था। चहल और अश्विन की गेंदें बिल्कुल अलग तरह की होती हैं। दोनों वर्षों से इंटरनेशनल क्रिकेट खेलते आ रहे हैं। उन्हें भली-भांति अंदाजा था किस किस्म की गेंदबाजी के सामने बल्लेबाज परेशान हो सकते हैं। जिस मुकाबले में चहल का प्रदर्शन उतना बेहतर नहीं रहता था, वहां अश्विन जिम्मेदारी समझते हुए टीम को जरूरी मौकों पर विकेट दिला रहे थे।

4. प्रयोग से पीछे नहीं हटे
जिस अश्विन को धीमी बल्लेबाजी के लिए रिटायर आउट किया, उसी अश्विन को राजस्थान रॉयल्स की टीम ने जरूरत पड़ने पर फर्स्ट डाउन बैटिंग करने के लिए भी भेज दिया। अश्विन का मानना था कि वह ठीक-ठाक बल्लेबाजी कर लेते हैं। सीजन शुरू होने से पहले उन्होंने बॉलिंग के अलावा बैटिंग का भी भरपूर अभ्यास किया। उन्हें खेलता देखकर टीम मैनेजमेंट को लगा कि अश्विन मुश्किल हालात में टीम के लिए रन बना सकते हैं। इसका फायदा भी टीम को मिला।

चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ 23 गेंद में 40 रनों की धमाकेदार पारी खेलकर अश्विन ने टीम को प्लेऑफ के टॉप 2 में जगह दिलाई। टॉप 2 में जगह बनाने का फायदा यह हुआ कि गुजरात के हाथों क्वालिफायर वन हारने के बावजूद उसे एक और मौका मिला। अवसर का लाभ उठाते हुए RR ने RCB को परास्त किया और फाइनल में पहुंच गई।

5. संजू सैमसन की कूल कप्तानी संजू सैमसन की कप्तानी टॉप क्लास रही। शिमरोन हेटमायर के उपलब्ध ना होने पर सैमसन ने खुद को बैटिंग ऑर्डर में नीचे करने से भी परहेज नहीं किया। ऐसा करके उन्होंने अश्विन जैसे खिलाड़ियों को लगातार अपनी जगह टॉप ऑर्डर में भेजकर भरोसा दिया कि टीम उनके साथ पूरी मजबूती से खड़ी है। कोई भी कप्तान अपने बैटिंग ऑर्डर को लेकर इतना लचीला नहीं दिखता, संजू को इससे कोई परेशानी नहीं थी।

संजू सैमसन कप्तान के तौर पर हमेशा कूल नजर आए। 16 मुकाबलों में वह केवल 3 दफा टॉस जीत सके। इसके बावजूद टीम ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया और आज फाइनल में है।

संजू सैमसन कप्तान के तौर पर हमेशा कूल नजर आए। 16 मुकाबलों में वह केवल 3 दफा टॉस जीत सके। इसके बावजूद टीम ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया और आज फाइनल में है।

ऋषभ पंत जैसे युवा खिलाड़ी लगातार आक्रोश में नजर आए। यहां तक कि पंत ने अंपायर के फैसलों के खिलाफ अपने बल्लेबाजों को मैदान से वापस आने तक का इशारा किया। संजू सैमसन ने कभी भी खेल भावना के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया। हर खिलाड़ी को बराबर मौका दिया, ताकि वह बेहतर प्रदर्शन कर सके। टीम जब मुकाबला गंवा भी देती, तब भी सैमसन स्थिति को बेहतर तरीके से संभालते थे। संजू की कप्तानी का यही तरीका उन्हें बाकी कप्तानों से अलग करता है।

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