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14 घंटे पहले
पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह की मौत का पोस्ट कोरोना रिकवरी के दौरान शुक्रवार रात 11:30 बजे हुई। वे 91 साल के थे। पांच दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हो गया था। मिल्खा सिंह का चंडीगढ़ के PGIMER में 15 दिनों से इलाज चल रहा था। उन्हें 3 जून को ऑक्सीजन लेवल गिरने के कारण ICU में भर्ती कराया गया था। 19 मई को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
उनका जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में हुआ था। उन्हें खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से वे विभाजन के बाद भारत आ गए और भारतीय सेना में शामिल हो गए।
मिल्खा सिंह ने अर्जुन अवॉर्ड लेने से मना कर दिया था
मिल्खा सिंह को 1959 में पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया था। 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इंकार कर दिया था। बाद में उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा था कि आजकल अवॉर्ड मंदिर में प्रसाद की तरह बांटे जाते हैं। मुझे पद्मश्री अवॉर्ड के बाद अर्जुन अवॉर्ड के लिए चुना गया।
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56 साल बाद कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने का रिकॉर्ड टूटा
मिल्खा ने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था। 56 साल तक यह रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका। 2010 में कृष्णा पूनिया ने 2010 डिस्कस थ्रो में गोल्ड मेडल हासिल किया था।
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एशियन गेम्स में लगातार दो गोल्ड जीते
मिल्खा ने 1962 जकार्ता एशियन गेम्स में लगातार दो गोल्ड मेडल जीते थे। उन्होंने 400 मीटर और 400 मीटर रिले रेस में गोल्ड जीता था। इससे पहले 1958 एशियन गेम्स में 200 और 400 मीटर में गोल्ड मेडल जीते थे।
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मिल्खा चाहते थे कि मरने से पहले कोई एथलीट मेडल जीते
2018 में 4 मार्च को पंजाब यूनिवर्सिटी में होने वाले 67वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में उड़न सिख मिल्खा सिंह को खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उपराष्ट्रपति और पंजाब यूनिवर्सिटी के चांसलर एम वेंकैया नायडू के हाथों उन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ। अवार्ड मिलने के बाद मिल्खा ने कहा था कि वे चाहते हैं कि उनके मरने से पहले कोई ओलंपिक मेडल जीत कर ले आए।
मिल्खा सिंह का 400 मीटर का नेशनल रिकॉर्ड 40 साल बाद टूटा
मिल्खा सिंह 1960 के रोम ओलिंपिक में 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर रहे थे। हालांकि, वह मेडल जीतने में सफल नहीं हुए, लेकिन 45.43 सेकेंड का समय निकाला था, जो नेशनल रिकॉर्ड था। यह रिकॉर्ड 40 साल तक रहा।
3 जून को दोबारा तबीयत बिगड़ने पर पीजीआई में भर्ती कराया गया।
यह मिल्खा सिंह के निधन से 24 मिनट पहले की उनकी फोटो है। शुक्रवार देर रात 11:24 बजे पीजीआई चंडीगढ़ में उनका निधन हो गया। उनकी 19 मई को कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आई थी। हालत खराब होने के बाद उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया। रिपोर्ट नेगेटिव आने पर 31 मई को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। 3 जून को तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें पीजीआई में भर्ती करवाया गया था। तीन डाॅक्टराें की टीम उनकी देखभाल कर रही थी।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था फ्लाइंग सिख का नाम
पांच बार के एशियन गेम्स गोल्ड मेडलिस्ट मिल्खा सिंह को पहली बार 1960 में फ्लाइंग सिख कहा गया था। यह उपनाम उन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने दिया था। 1960 में अयूब खान ने इंडो-पाक स्पोर्ट्स मीट के लिए मिल्खा सिंह को पाकिस्तान आमंत्रित किया था। मिल्खा सिंह बचपन में जिस देश को छोड़ आए थे वहां वे नहीं जाना चाहते थे। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जोर देने पर वे भारतीय दल के लीडर के तौर पर पाकिस्तान गए।
मिल्खा ने 200 मीटर स्प्रिंट में पाकिस्तान के सुपर स्टार अब्दुल खलीक को आसानी से हराकर गोल्ड मेडल जीता। मेडल सेरेमनी में अयूब खान ने मिल्खा सिंह को पहली बार फ्लाइंग सिख कहा।
बंटवारे के दौरान हो गए थे अनाथ
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था। खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
मिल्खा तीसरे अटेम्प में सेना में चुने गए
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मिलने की तस्वीर। इसमें वे सेना की वर्दी में हैं। मिल्खा तीसरे अटेम्प में सेना में चुने गए थे।
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