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बेंगलुरू8 मिनट पहले
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मुंबई और मध्यप्रदेश के बीच बुधवार से बेंगलुरु के एम चिन्नास्वामी स्टेडियम में रणजी ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला शुरू होगा। मुंबई 41 बार की चैंपियन है वहीं, MP की टीम अपने पहले खिताब की तलाश में उतरेगी।
88 साल के टूर्नामेंट के इतिहास में मध्यप्रदेश ने दूसरी बार फाइनल में जगह बनाई है। टीम 23 साल के बाद खिताबी मुकाबला खेल रही है। MP की इस कामयाबी के पीछे कोच चंद्रकांत पंडित को सबसे ज्यादा श्रेय दिया जा रहा है।
चलिए जानते हैं कि पंडित ने कैसे एक औसत दर्जे की टीम की कायापलट कर उसे देश के सबसे बड़े घरेलू टूर्नामेंट की फाइनलिस्ट बना दिया।
दो साल पहले टीम से जुड़े थे पंडित
पंडित ने दो साल पहले ही टीम की कोचिंग की कमान संभाली थी। उनके कार्यकाल के पहले साल में MP की टीम लीग राउंड में ही बाहर हो गई थी। लेकिन अगले सीजन में यानी इस बार MP ने कमाल कर दिया। करीब 1.5 करोड़ रुपए की सालाना सैलरी पर नियुक्त हुए कोच पंडित ने टीम को दो साल में फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया।
कुमार कार्तिकेय ने पिछले मैच में पांच विकेट लिए थे।
एक कॉल पर टीम मैदान में हाजिर होती थी
पंडित ने सबसे ज्यादा जोर डिसिप्लिन पर दिया। चाहे खिलाड़ियों के आने-जाने की टाइमिंग हो या ड्रेस कोड हो या फिर टीम बिहेवियर, पंडित रत्ती भर भी अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करते थे। पंडित के एक कॉल पर टीम प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड पर होती थी। एक बार तो उन्होंने रात 12 बजे खिलाड़ियों को ग्राउंड पर उतार दिया था। वे उस दिन खिलाड़ियों की अलर्टनेस देखना चाहते थे। यदि कोई खिलाड़ी ट्रेनिंग में लेट होता था तो उसे पूरा सेशन छोड़ना होता था। यदि रवानगी के समय कोई लेट हो जाए तो टीम उसे वहीं छोड़कर चली जाती थी। बाद में खिलाड़ी खुद के खर्चे से टीम ज्वाइन करता था।
मप्र के लिए रजत पाटीदार ने 506 रन बनाए हैं। (फाइल)
खुद टैलेंट स्काउट किया
पंडित क्रिकेट मैच देखना खूब पसंद करते हैं। वे एज ग्रुप क्रिकेट के डिविजनल मैच देखने पहुंच जाते थे। यदि कोई टैलेंटेट खिलाड़ी दिखता तो उसे कैंप के लिए बुला लेते थे।
मिक्स्ड कैंपिंग काम आई
पंडित ने दो साल के कार्यकाल में टीम के लिए 405 दिन ट्रेनिंग कैंप लगाया। बारिश में कैंप का आयोजन होता था। पंडित ने रणजी टीम के साथ-साथ महिला टीम और एज ग्रुप की टीमों के खिलाड़ियों को भी हर तरह की चुनौतियों के लिए ट्रेन किया। पंडित के कोच बनने के बाद एक अंडर-19 क्रिकेटर भी रणजी टीम के खिलाड़ियों के साथ नेट्स कर सकता था।
सरफराज खान ने 803 रन बनाए हैं इस सीजन में सबसे ज्यादा (बाएं)।
युवाओं के लिए सिलेक्टर्स से लड़ जाते थे
पंडित मजबूत टीम बनानवे के लिए डिविजनल मैचों और ट्रायल के माध्यम से खिलाड़ियों को स्काउट करते थे। जो खिलाड़ी टैलेंटेड दिखता उसे कैंप में बुलाते थए। सूत्र यहां तक बताते हैं कि इस सीजन में एक खिलाड़ी के चयन पर उनकी चयनकर्ताओं से भी बहस हो गई थी। यहां तक कि उनके इस्तीफे की खबरें भी आईं।
हर खिलाड़ी का लेखा-जोखा रखते थे
कोच पंडित अपने हर खिलाड़ी का डोजियर तैयार रखते थे। इसमें उसका परफॉर्मंस, उसका ट्रेनिंग शेड्यूल सब कुछ होता था। हर दिन टीम मीटिंग होती थी। इसमें कोच हर खिलाड़ी को उसके खेल से संबंधित टिप्स देते थे और अगले दिन उस पर काम होता था।
यशस्वी जायसवाल भी अच्छे फार्म में चल रहे हैं।
मैच सिमुलेशन भी काम आया
कैंप से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि इस सीजन में मैच सिमुलेशन प्रैक्टिस भी काम आई। वे कैंप के दौरान खिलाड़ी सिचुएशन दे देते थे और उसके हिसाब से खेलने को कहते थे। इस दौरान हर खिलाड़ी के कान में हियरिंग डिवाइस लगी होती थी और कोच बाउंड्री के बाहर वॉकी टॉकी से इंस्ट्रक्शन देते थे।
जूनियर-सीनियर कल्चर खत्म करने के लिए भैया शब्द बैन
कोच ने टीम में जूनियर-सीनियर कल्चर खत्म करने के लिए कोच ने भैया के संबोधन पर बैन लगा दिया था। सब एक दूसरे को नाम से ही बुलाते थे। फिर चाहे वह जूनियर हो या सीनियर। कोच का तर्क था कि यदि आप किसी की इज्जत करते हो तो दिल से करो। जुबान से नहीं।खिलाड़ियों को मेंटली टफ करने के लिए महू स्थित आर्मी इन्फेंट्री में खिलाड़ियों के सेशन कराए। इसके लिए सेना से विशेष इजाजत ली गई। इतना ही नहीं, वहां के एक्सपर्ट को होलकर स्टेडियम बुलाकर खिलाड़ियों को ट्रेन किया।
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