- Hindi News
- Sports
- Afghan Cyclist Masomah Ali Zada Stugling Story At Tokyo Olympics Refugee Athletes Ali Zada
टोक्यो3 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
स्कार्फ पहनकर साइकिल चलाने वाली अफगानिस्तानी लड़की मासोमा अली जादा को आप दूसरी मलाला कह सकते हैं। काफी संघर्षपूर्ण जिंदगी से लड़ते हुए आज वे टोक्यो ओलिंपिक तक पहुंची हैं। उनके परिवार को ईरान से अफगानिस्तान आना पड़ा, तब वे काफी छोटी थीं। यहां भी तालिबानियों से लड़ते हुए संघर्ष करना पड़ा। उन पर हमले हुए और शादी के लिए भी दबाव बनाया गया। आखिर में मासोमा को जबरन देश निकाला गया तो परिवार फ्रांस पहुंचा।
बचपन से ही साइकिल चलाने की शौकीन 24 साल की मासोमा अली जादा का परिवार फ्रांस में शरणार्थियों के तौर पर रह रहा है। यहां स्कॉलरशिप मिलने के बाद अपनी मेहनत से मासोमा आज टोक्यो ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाई हैं।
इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (IOC) ने 56 रिफ्यूजी एथलीट्स को स्कॉलरशिप दी। इनमें से मासोमा समेत 29 को टोक्यो ओलिंपिक के लिए सिलेक्ट किया गया। टूर्नामेंट में मासोमा को 28 जुलाई को 25 अन्य एथलीट्स के साथ 22.1 किलोमीटर रेस लगानी होगी।
स्विटजरलैंड में एक महीने तैयारी की
टोक्यो ओलिंपिक में शामिल होने से पहले मासोमा ने वेस्टर्न स्विटजरलैंड में तैयारी की। उनकी प्रैक्टिस एक महीने से UCI वर्ल्ड साइकिलिंग सेंटर ऐगले में चल रही थी। मासोमा 14 जुलाई को टोक्यो पहुंच गईं। इस सेंटर में जीन-जैकस हैनरी ने मासोमा को कोचिंग दी है। कोच ने कहा कि अफगानिस्तान से आने वाली सभी महिला साइकिलिस्ट में से मासोमा बेस्ट हैं।
अफगानिस्तान में साइकिल चलाने पर गालियां मिलती थीं: मोसामा
हजारा समुदाय से आने वाली मासोमा ईरान में रहती थीं। यहां वे बचपन से ही साइकिल चलाया करती थीं। इसके बाद उनका परिवार अफगानिस्तान लौटा तो काबुल में ही उन्होंने 16 साल की उम्र में नेशनल टीम ज्वॉइन कर ली थी। इसके बाद से ही उनके और परिवार के लिए मुश्किल दौर शुरू हो गया था। तालिबानियों द्वारा उन पर हमले किए गए। पत्थर फेंके गए। पड़ोसी और रिश्तेदार ताने मारते और गालियां देते थे। शादी के लिए भी दबाव बनाया जाने लगा था।
लोग हमें मारना चाहते थे: मोसामा
मासोमा ने कहा कि मैं जानती हूं कि यह बहुत मुश्किल था, लेकिन मैं सोच भी नहीं सकती कि लोग हमें मारना चाहते थे। पहले साल जब मैंने साइकिल शुरू की तब किसी ने मुझे टक्कर मारी। वह कार से था। उसने मुझे हाथ में भी पीछे की तरफ मारा। वहां जो भी महिला साइकिल चलाती थीं, उन्हें लोग बेइज्जत करते थे।
देश छोड़ना कितना मुश्किल होता है, यह हर रिफ्यूजी जानता: मोसामा
उन्होंने कहा कि मेरे अंकल भी परिवार से कहते थे कि मोसामा को साइकिल चलाने से रोकना चाहिए। वे बार-बार यही कहते थे। इसके बाद इतना दबाव बनाया गया कि उनके परिवार को 2017 में अफगानिस्तान छोड़कर फ्रांस आना पड़ा। मोसामा ने कहा कि हमारे पास देश छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। यह कितना मुश्किल होता है, यह हर रिफ्यूजी जानता है।
Stay connected with us on social media platform for instant update click here to join our Twitter, & Facebook
We are now on Telegram. Click here to join our channel (@TechiUpdate) and stay updated with the latest Technology headlines.
For all the latest Sports News Click Here
For the latest news and updates, follow us on Google News.