नई दिल्ली2 घंटे पहले
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ग्रैंडमास्टर आर. प्रगनाननंदा और उनकी बहन वैशाली रमेशबाबू ने अनूठा इतिहास रचा है। वैशाली स्पेन में एललोब्रेगेट ओपन के दौरान 2500 रेटिंग को पार कर भारत की तीसरी महिला ग्रैंडमास्टर बन गईं। इस उपलब्धि के साथ वैशाली और उनके छोटे भाई प्रगनाननंदा इतिहास में दुनिया की पहली ग्रैंडमास्टर भाई-बहन की जोड़ी बन गए हैं।
साथ ही दोनों भाई-बहन ग्रैंडमास्टर बनने के बाद कैडेट्स भी बन गए हैं। दोनों अब वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप खिताब में शामिल हो सकते हैं। इससे पहले भारत की कोनेरू हंपी और हारिका द्रोणावली महिला ग्रैंडमास्टर रह चुकी हैं। ग्रैंडमास्टर बनने के बाद उत्साहित वैशाली का कहना है कि मैं खिताब हासिल करने से काफी खुश हूं। वैशाली ने कहा कि जब से मैंने शतरंज खोलना शुरू किया था, तब मैं ग्रैंडमास्टर बनने का सपना देखती थी।
अब ये पूरा हो गया है। अभी मेरा फोकस एललोब्रेगेट ओपन टूर्नामेंट जीतने पर है। 18 साल के प्रगनाननंदा ने 12 साल की उम्र में जबकि वैशाली ने 22 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब पाया है। भाई-बहन की यह जोड़ी शतरंज आेलिंपियाड में डबल ब्रॉन्ज और एशियाई खेलों में डबल सिल्वर मेडल भी जी चुकी है। कोच रमेश का कहना है कि दोनों भाई-बहन रोज 8 घंटे प्रैक्टिस करते हैं।
प्रगनाननंदा ने बड़ी बहन से सीखा था शतरंज
प्रगनाननंदा की बड़ी बहन वैशाली ने भी छोटी उम्र से ही शतरंज खेलना शुरू किया था। घर में बहन वैशाली को खेलता देख प्रगनाननंदा की भी शतरंज के प्रति रुचि बढ़ी। वैशाली ने ही छोटे भाई प्रगनाननंदा को शतरंज की बारीकियां सिखाईं।
वैशाली एक इंटरव्यू में बताती हैं- ‘जब मैं करीब 6 साल की थी, तो बहुत कार्टून देखती थी। मुझे TV से दूर करने के लिए पेरेंट्स ने मेरा नाम शतरंज और ड्रॉइंग की क्लास में लिखा दिया।’बहन को चेस खेलता देख प्रगनानंदा भी उससे प्रेरित हुए और महज 3 साल की उम्र में शतरंज सीखने लगे। उन्होंने चेस की कोई क्लास नहीं ली और अपनी बड़ी बहन से खेलना सीखा।
पिता बैंक में काम करते हैं, मां हाउस वाइफ
प्रगनानंदा का जन्म 10 अगस्त, 2005 को चेन्नई में हुआ। उनके पिता स्टेट कॉर्पोरेशन बैंक में काम करते हैं, जबकि मां नागलक्ष्मी एक हाउसवाइफ हैं। उनकी एक बड़ी बहन वैशाली आर हैं। वैशाली भी शतरंज खेलती हैं।
प्रगनानंदा का नाम पहली बार चर्चा में तब आया, जब उन्होंने 7 साल की उम्र में वर्ल्ड यूथ चेस चैम्पियनशिप जीत ली। तब उन्हें फेडरेशन इंटरनेशनल डेस एचेक्स (FIDE) मास्टर की उपाधि मिली।
वे 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बन गए और सबसे कम उम्र में यह उपाधि हासिल करने वाले भारतीय बने। इस मामले में प्रगनानंदा ने भारत के दिग्गज शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद का रिकॉर्ड तोड़ा। इससे पहले, वे 2016 में यंगेस्ट इंटरनेशनल मास्टर बनने का खिताब भी अपने नाम कर चुके हैं। तब वे 10 साल के ही थे। चेस में ग्रैंडमास्टर सबसे ऊंची कैटेगरी वाले खिलाड़ियों को कहा जाता है। इससे नीचे की कैटेगरी इंटरनेशनल मास्टर की होती है।
प्रगनानंदा जहां भी जाते हैं उनकी मां नागलक्ष्मी भी साथ में जाती हैं।
प्रगनानंदा अजरबैजान के बाकू में हुए FIDE वर्ल्ड कप में थे रनर अप
प्रगनानंदा अजरबैजान के बाकू में हुए FIDE वर्ल्ड कप में रनर अप रहे थे। उन्होंने फाइनल में उन्हें 5 बार के वर्ल्ड चैंपियन मैग्नस कार्लसन ने टाईब्रेकर में 1.5-0.5 से हराया। टाईब्रेकर का पहला रैपिड गेम नॉर्वे के खिलाड़ी ने 47 मूव के बाद जीता था। दूसरा गेम ड्रॉ रहा और कार्लसन चैंपियन बन गए। इससे पहले, दोनों ने क्लासिकल राउंड के दोनों गेम ड्रॉ खेले थे।
प्रगनानंदा अगर यह मुकाबला जीत जाते तो 21 साल बाद कोई भारतीय यह टाइटल जीतता। इससे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2002 में इस चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। तब प्रगनानंदा पैदा भी नहीं हुए थे।
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