स्पोर्ट्स डेस्क34 मिनट पहले
टीम इंडिया अब तक सिर्फ एक बार टी-20 वर्ल्ड कप खिताब जीत पाई है। 2007 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में यंगिस्तान ने पहली और आखिरी बार खिताब पर कब्जा जमाया था। इसके बाद हम हर टूर्नामेंट में टीम से चैंपियन बनने की उम्मीद बांधते हैं लेकिन आखिरकार निराशा हाथ लगती है।
हम कहीं न कहीं चैंपियन बनने के अपने ही फॉर्मूले को भूल रहे हैं। हमने 2007 में सबसे युवा टीम के साथ खिताब जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। इस बार काफी उम्रदराज टीम भेजी है। 2022 की हमारी टीम की औसत उम्र 30 साल से ऊपर है। इतनी उम्र के साथ अब तक भारत तो क्या दुनिया की कोई भी टीम इस टूर्नामेंट का खिताब नहीं जीत पाई है। अब हम लगातार युवा जोश की जगह अनुभव को तरजीह देने लगे हैं।
इस मुद्दे पर हमने 2007 टी-20 टीम के सिलेक्टर रहे संजय जगदाले और टीम के मेंबर रहे तेज गेंदबाज एस.श्रीसंत से भी बात की है। उनकी राय आप आगे पढ़ेंगे। सबसे पहले देखते हैं कि हर टी-20 वर्ल्ड कप में भारत का प्रदर्शन कैसा रहा है।
इस बार हमारी अब तक की सबसे उम्रदराज टीम खेलेगी
भारतीय टीम इस बार रोहित शर्मा की कप्तानी में चैंपियन बनने का दावा ठोकने ऑस्ट्रेलिया गई है। कप्तान रोहित खुद 35 साल के हैं, वहीं पूरी टीम की औसत उम्र 30.6 साल है। 15 सदस्यीय टीम में 10 खिलाड़ी (67%) ऐसे हैं जिनकी उम्र 30 साल से ऊपर है।
यह किसी भी टी-20 वर्ल्ड कप में भारत की अब तक की सबसे उम्रदराज टीम है। 2007 में जब हम चैंपियन बने थे तब हमारी टीम की औसत उम्र महज 23.6 साल थी। यानी महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में खिताब जीतने वाली टीम का एक खिलाड़ी औसतन 24 साल से भी कम उम्र का था। यह इकलौता वर्ल्ड कप है जिसमें भारतीय खिलाड़ियों की औसत उम्र 24 साल से कम थी।।
धोनी सबसे युवा कप्तान थे, रोहित सबसे उम्रदराज
भारत ने जब 15 साल पहले वर्ल्ड कप जीता तब टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी थे। उनकी उम्र उस समय 26 साल थी। इसके बाद से हर टूर्नामेंट में भारतीय कप्तान की उम्र इससे ज्यादा रही है। इस बार रोहित टी-20 वर्ल्ड कप में भारत के सबसे उम्रदराज कप्तान का रिकॉर्ड बनाने जा रहे हैं
सिलेक्टर ने कहा-2007 में अनुभव और युवा जोश का मिश्रण तैयार किया था
2007 में टीम इंडिया की सिलेक्शन कमेटी के सदस्य रहे संजय जगदाले ने भास्कर से बातचीत में कहा कि पहली बार टी-20 वर्ल्ड कप के लिए टीम चुनना बिल्कुल ही अलग अनुभव था। उन्होंने कहा- तब सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गजों ने टूर्नामेंट से नाम वापस ले लिया था। उनका मानना था कि भारत को इस टूर्नामेंट में युवा खिलाड़ियों के दल को भेजना चाहिए। इसके बाद धोनी की कप्तानी में टीम चुनी गई।
टीम में युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग, हरभजन सिंह जैसे खिलाड़ी भी शामिल थे जिनके पास इंटरनेशनल क्रिकेट में सात से आठ साल का अनुभव था। वहीं, एस. श्रीसंत, आरपी सिंह, यूसुफ पठान, जोगिंदर शर्मा, रॉबिन उथप्पा, रोहित शर्मा जैसे बेहद कम मैच खेलने वाले खिलाड़ी भी टीम में मौजूद थे। औसत उम्र कम होने से टीम बैटिंग और बॉलिंग के अलावा फील्डिंग में भी काफी ऊर्जावान थी और खिलाड़ी नए फॉर्मेट को लेकर ज्यादा उत्साहित थे।
यह पहले टी-20 वर्ल्ड कप में भाग लेने वाली भारतीय टीम है।
यह 2022 में टी-20 वर्ल्ड कप में भाग लेने गई भारतीय टीम है।
सिर्फ अनुभव से नहीं मिलती कामयाबी-श्रीसंत
2007 टी-20 वर्ल्ड कप में 6 विकेट लेने वाले तेज गेंदबाज एस. श्रीसंत भी इस बात से सहमत हैं कि सिर्फ अनुभव से इस टूर्नामेंट में कामयाबी नहीं मिलती है। श्रीसंत ने कहा कि 2007 में भारतीय बॉलिंग लाइनअप बिल्कुल नई थी। उनके अलावा आरपी सिंह, इरफान पठान और जोगिंदर शर्मा के हाथ में तेज गेंदबाजी की कमान थी। लेकिन इस युवा तिकड़ी ने टीम को वह कामयाबी दिलाई जो उसके बाद कभी भारत को मयस्सर नहीं हुई।
चार बार सेमीफाइनल भी नहीं खेल पाए
अब जान लेते हैं कि भारतीय टीम अब तक हुए वर्ल्ड कप में कहां तक का सफर तय कर पाई है। भारत ने सात में सिर्फ तीन वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल या इससे आगे तक का सफर तय किया है। 2009, 2010, 2012 और 2021 में हमारी टीम ग्रुप स्टेज में ही हारकर बाहर हो गई। 2007 में हम चैंपियन बने थे। 2014 में भारत ने फाइनल तक का सफर तय किया था जबकि 2016 में हम अपने घर में सेमीफाइनल में हारे थे। 2014 की टीम इंडिया की औसत उम्र पिछले चार टूर्नामेंट में सबसे कम थी।
क्यों टी-20 के लिए युवा खिलाड़ी जरूरी हैं
120 बॉल के फॉर्मेट में युवा खिलाड़ी क्यों जरूरी हैं। इसको लेकर हमने हॉकी और क्रिकेट के कई खिलाड़ियों के फिटनेस एक्सपर्ट रहे जी सतीश कुमार से बातचीत की। उन्होंने कहा क्रिकेट के सबसे छोटे फॉर्मेट में शारीरिक तौर पर फिट रहना बेहद जरूरी है। युवा खिलाड़ी एनर्जी से भरे हुए होते हैं। वो अपने गोल को लेकर ज्यादा मोटिवेटेड रहते हैं। उनकी तेजी से सोचने और रिस्क लेने की क्षमता और अनुभवी खिलाड़ियों से ज्यादा होती है।
सबसे ज्यादा फील्डिंग में इसका असर होता है। युवा खिलाड़ियों की बॉडी मैच्योर प्लेयर से ज्यादा फ्रेश होती है। अगर कोई 30 साल या उससे ज्यादा उम्र का खिलाड़ी बॉल के पीछे भागता है तो वह ज्यादा समय लेता है। जिससे 1 रन को 2 या 3 रन में बदलना आसान होता है। वहीं, युवा प्लेयर अपनी फुर्ती से बॉल के पास जल्दी पहुंच जाते हैं। टी-20 फॉर्मेट में 1-1 रन बहुत मायने रखते हैं। इसलिए युवा खिलाड़ी इस फॉर्मेट में आम तौर पर बेहतर साबित होते हैं।
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