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मिल्खा सिंह को रह गया मलाल: 125 करोड़ की आबादी में दूसरा फ्लाइंग सिख पैदा नहीं हुआ; नहीं चाहते थे कि बेटा स्पोर्ट्स पर्सन बने

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नई दिल्ली43 मिनट पहले

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पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह (91) कोरोना की वजह से निधन हो गया है। उनका चंडीगढ़ के PGIMER में इलाज चल रहा था। 5 दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हुआ था। मिल्खा सिंह दुनिया को तो अलविदा कह गए, लेकिन कुछ ऐसी भी बातें हैं जिनका उनको मलाल रह गया।

वे चाहते थे कि 125 करोड़ की आबादी वाले देश में दूसरा मिल्खा सिंह आना चाहिए था। दूसरा यह था कि वे अपने बेटे जीव मिल्खा सिंह को कभी भी स्पोर्ट्स पर्सन नहीं बनाना चाहते थे। यह बात उन्होंने 4 साल पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कही थी।

मिल्खा सिंह तब दौड़ता था जब पैरों में जूते नहीं होते थे

फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह ने कहा था- नहीं जानता था कि ओलिंपिक गेम्स होते क्या हैं, एशियन गेम्स और वन हंड्रेड मीटर और फोर हंड्रेड मीटर रेस क्या होती है? मिल्खा सिंह तब दौड़ता था जब पैरों में जूते नहीं होते थे। न ही ट्रैक सूट होता था। न कोचेस थे और न ही स्टेडियम। 125 करोड़ है देश की आबादी। मुझे दुख इस बात का है कि अब तलक कोई दूसरा मिल्खा सिंह पैदा नहीं हो सका।

उन्होंने कहा था कि मैं 90 साल का हो गया हूं, दिल में बस एक ही ख्वाहिश है कोई देश के लिए गोल्ड मेडल एथलेटिक्स में जीते। ओलंपिक में तिरंगा लहराए। नेशनल एंथम बजे। अपने हुनर से कई खिताब जीतने वाले मिल्खा सिंह ने दिल की ये टीस रोटरी क्लब के इवेंट ब्लेसिंग में शेयर की। तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन वे बतौर स्पेशल गेस्ट पहुंचे थे।

मिल्खा ने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था। अगले 56 साल तक यह रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका।

मिल्खा ने 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत के लिए पहला गोल्ड जीता था। अगले 56 साल तक यह रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सका।

नहीं चाहता था बेटा स्पोर्ट्स में जाए
फ्लाइंग सिख ने कहा था कि मैं और मेरी पत्नी निर्मल कौर दोनों स्पोटर्स पर्सन रहे हैं। वे वॉलीबॉल टीम की नेशनल कैप्टन थीं। हम नहीं चाहते थे कि हमारा बेटा जीव मिल्खा सिंह स्पोर्ट्स में जाए। मैं, मेजर ध्यानचंद और लाला अमरनाथ (क्रिकेटर) साथ के ही थे। मुझे लाला अमरनाथ बताते थे मैच खेलने के दो रुपए मिलते थे। मेरा भी वही हाल था, पैसे तो थे नहीं।

मिल्खा सिंह ने कहा कि हमने तय किया बेटे को कोई प्रोफेशनल डिग्री दिलाएंगे। डॉक्टर, इंजीनियर वाली, मगर स्पोर्ट्स नहीं। मैं उसे शिमला के स्कूल में भेजना चाहता था, ताकि उसका ध्यान खेलों में न जाए। मगर कुछ और ही होना लिखा था शायद। एक बार स्कूल की तरफ से जूनियर गोल्फ में उसने (जीव मिल्खा) नेशनल जीता। फिर इंटरनेशनल के लिए लंदन और अमेरिका गया। 4 बार यूरोप की चैंपियनशिप जीती और फिर उसे पद्मश्री मिल गया।

न पैसे थे न सिफारिश, आर्मी से 3 बार हुआ रिजेक्ट
उन्होंने कहा था कि मुझे आर्मी से 3 बार रिजेक्ट किया गया। मेरी हाइट ठीक थी, दौड़ा भी। मेडिकल टेस्ट भी पास किया, मगर मुझे रिजेक्ट कर दिया गया। उस दौर में भी पैसे और सिफारिश चलती थी। ये सब मेरे पास नहीं था। लिहाजा मैं 3 बार रिजेक्ट हुआ। मगर ये भी सच है कि मैं इसके बाद जो कुछ बना वो आर्मी के कारण ही बना। वहां स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग मिली, कोच मिले। तब कहीं जाकर मैं ये सब कर पाया।

पाकिस्तान में हुआ था जन्म
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था। खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हुए थे।

भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया
1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलिंपिक खेल में भाग लिया। कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन आगे की स्पर्धाओं के रास्ते खोल दिए। 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 और 400 मीटर में कई रिकॉर्ड बनाए। इसी साल टोक्यो में आयोजित एशियाई खेलों में 200 मीटर, 400 मीटर की स्पर्धाओं और राष्ट्रमंडल में 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीते। उनकी सफलता को देखते हुए, भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।

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