मुंबई13 घंटे पहलेलेखक: अजीत सिंह
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पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के खत्म होने तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों से लोगों को राहत मिलती रहेगी। कच्चे तेल का भाव इस समय 84 डॉलर के पार है, बावजूद इसके आने वाले समय में इनके दामों में बढ़ोत्तरी का कोई इरादा नहीं है।
70 दिनों से स्थिर हैं दाम
रुझान बताते हैं कि पिछले करीबन 70 दिनों से देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। जबकि इसी दौरान कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से बढ़त हुई है और यह दो महीने के उच्चतम लेवल पर पहुंच गया है।
नवंबर में 85 डॉलर था भाव
आंकड़ों के मुताबिक, 11 नवंबर को क्रूड ऑयल का भाव 85 डॉलर प्रति बैरल था। एक दिसंबर को घटकर यह 69 डॉलर पर आ गया था। तब से लेकर अब तक इसमें करीबन 16 डॉलर की बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले 40 दिनों में कच्चे तेल की कीमतों मे 16 डॉलर की बढ़ोत्तरी के बाद भी देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर हैं। इस आधार पर देखें तो तेल की कीमतों में 7 रुपए प्रति लीटर की बढ़त होनी चाहिए थी। लेकिन मोदी सरकार ने इसे जस का तस रखा है।
आयात बिल पर होगा असर
हालांकि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से देश का आयात बिल बढ़ जाएगा। इसके साथ ही महंगाई और रुपए की कीमत पर भी इसका असर होगा। नए वैरिएंट ओमिक्रॉन से जरूर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, पर पहले दो लॉकडाउन की तरह इस बार उतनी कड़ाई से प्रतिबंध लागू नहीं हो रहे हैँ। यही कारण है कि पेट्रोल और डीजल की मांग बनी हुई है।
ट्रांसपोर्टेशन पूरी रफ्तार में चालू है
बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में रिकवरी से ट्रांसपोर्टेशन अबाधित रूप से चालू है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर ओमिक्रॉन जनवरी अंत तक कमजोर होता है तो कच्चे तेल की कीमतें 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर सकती हैँ। ऐसी स्थिति में भारत का आयात बिल बढ़ेगा और रुपए के साथ महंगाई भी बढ़ जाएगी। हालांकि देश में फरवरी से मार्च तक 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए तेलों की कीमतों को स्थिर ही रखे जाने की उम्मीद है।
10 मार्च के बाद कीमतें बढ़ सकती हैं
ऐसी स्थिति में 10 मार्च के बाद से तेल की कीमतें ऊपर जा सकती हैं। फिलहाल कुछ राज्यों में पेट्रोल 100 रुपए प्रति लीटर के पार है तो डीजल 100 रुपए के करीब है। देश में जून 2017 में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में रोजाना बदलाव की शुरुआत की गई थी। उसके बाद से यह दूसरी बार है, जब इतने लंबे समय तक इनमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।
इसके पहले 17 मार्च 2020 से 6 जून 2020 के बीच में कोई बदलाव नहीं किया गया था। उस समय 82 दिनों तक कीमतें स्थिर थीं।
- चुनावों के दौरान कीमतें स्थिर हो जाती हैं
- कर्नाटक चुनाव में 2018 में 19 दिन तक नहीं बढ़ा भाव
- गुजरात चुनाव में 2017 में 17 दिन तक नहीं बढ़ा दाम
- 2017 में 5 राज्यों के चुनाव में भी नहीं बढ़ी थीं कीमतें
अंतिम बार 4 नवंबर को हुआ था बदलाव
पेट्रोल और डीजल की कीमतें अंतिम बार 4 नवंबर को बदली गई थीं। उस समय केंद्र सरकार ने डीजल पर प्रति लीटर 10 रुपए और पेट्रोल पर 5 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी में कमी की थी। उस दिन कुछ राज्यों ने तुरंत लोकल टैक्स को कम कर दिया था, जिससे तेल की कीमतें घट गई थीं। इसमें ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्य थे। उसके बाद पंजाब और दिल्ली ने भी कीमतों में कमी थी। पेट्रोल पर 6 मई 2020 को 10 रुपए और डीजल पर 13 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई थी।
कर्नाटक चुनाव में स्थिर थीं कीमतें
वैसे कर्नाटक में जब विधानसभा चुनाव था, तब मई 2018 में 19 दिन तक तेल की कीमतें स्थिर थीं। जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसमें 5 डॉलर प्रति बैरल की बढ़त हुई थी। उससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान दिसंबर 2017 में 14 दिन तक तेल की कीमतें स्थिर थीं। इनके अलावा जब पांच राज्यों पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में 16 जनवरी 2017 से 1 अप्रैल 2017 तक विधानसभा चुनाव थे, तब भी तेल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
2019 के आम चुनाव के दौरान पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर थीं, लेकिन जिस दिन चुनाव का परिणाम आया, उसी दिन इनके दामों में बढ़ोत्तरी कर दी गई। बुधवार को कच्चे केल की कीमतें 83.82 डॉलर प्रति बैरल थी जो 26 अक्टूबर 2021 को 86.40 डॉलर थी।
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