दिल्ली9 मिनट पहले
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इस महीने की शुरुआत में जब भारतीय पुरुष फुटबॉल टीम ने सैफ चैम्पियनशिप जीती तो, शीर्ष खिलाड़ियों सहित देश की कई लोकप्रिय हस्तियों ने सोशल मीडिया पर टीम को बधाई दी। इसके ठीक दो महीने पहले अहमदाबाद में गोकुलम केरला एफसी ने देश की शीर्ष महिला प्रतियोगिता में से एक इंडियन वीमेंस लीग (आईडब्ल्यूएल) जीती, लेकिन इस सफलता पर किसी का ध्यान नहीं गया।
इस मामले में यह तर्क दिया जा सकता है कि सैफ चैम्पियनशिप के विपरीत आईडब्ल्यूएल एक घरेलू लीग थी।हालांकि, महिला टीम भी पांच सीजन में से चार बार सैफ चैम्पियनशिप जीत चुकी है। जब वेतन, प्राइज मनी, एक्सपोजर की बात आती है तो देश में महिला और पुरुष फुटबॉल में अंतर साफ नजर आता है।
आईडब्ल्यूएल विजेता गोकुलम केरला को 10 लाख रुपए मिले थे। वहीं, आईएसएल चैम्पियन को 6 करोड़ रुपए मिलते हैं। विजेता टीम को चेक अहमदाबाद में समारोह में दिया गया था।
आईडब्ल्यूएल का यह पुरस्कार वितरण समारोह उस इवेंट में आयोजित किया गया था, जिसमें गुजरात स्टेट फुटबॉल एसोसिएशन की पुरुष वर्ग की क्लब चैम्पियनशिप हुई थी। मतलब महिला फुटबॉल के लिए अलग इवेंट तक नहीं हुआ। रैंकिंग में महिला टीम में 60वें स्थान पर है, जबकि पुरुष टीम 99वें पर है।
महिला टीम को साल में केवल 3 टूर्नामेंट खेलने का मौका मिलता है
महिला टीम की पूर्व खिलाड़ी सुजाता कर कहती हैं, ‘पुरुष टीम पूरे साल कई स्तरों पर टूर्नामेंट खेलती है। महिलाओं को केवल तीन टूर्नामेंट खेलने का मौका मिलता है- सीनियर महिला नेशनल फुटबॉल चैम्पियनशिप, अंडर-17 नेशनल और आईडब्ल्यूएल। अगर महिलाओं को भी ज्यादा एक्सपोजर मिले, तो प्रदर्शन कहीं बेहतर होगा।’
भारतीय टीम की फॉरवर्ड एन. बाला देवी कहती हैं, ‘जब मैं ब्रिटेन में खेल रही थी, तो घरेलू स्तर पर 30 मैच होते थे। इसके अलावा वहां खिलाड़ी नेशनल टीम के लिए भी 20 मैच खेल लेती है। यानी वे सालभर में 50 मैच खेलती हैं। यहां हम मुश्किल से तीन महीने की ट्रेनिंग करते हैं और खेलते हैं।’
महिला लीग के पास ब्रॉडकास्टर नहीं, यू-ट्यूब पर दिखाते हैं मैच
आईडब्ल्यूएल की विजेता को जो राशि मिली, वह पुरुषों की आई-लीग में चौथे नंबर पर रहने वाली टीम को मिलने वाली राशि के आधे से भी कम है। उसे 25 लाख रुपए मिलते हैं। देश में महिला फुटबॉल का मीडिया कवरेज भी अच्छा नहीं होता।
सुविधाएं भी खराब, खिलाड़ियों को 30 किमी दूर ठहराया गया था
आईडब्ल्यूएल के ब्रॉडकास्टिंग का नोटिस 21 अप्रैल को पब्लिश किया गया था, टूर्नामेंट शुरू होने से महज 5 दिन पहले। आखिरकार लीग शुरू होने से एक दिन पहले ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने घोषणा की थी कि उसके यू-ट्यूब चैनल पर मैचों की लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी। वो भी शाम 4.30 बजे से होने वाले मैचों की। सुबह 8.30 बजे से खेले गए मैचों की स्ट्रीमिंग नहीं हुई।
आईडब्ल्यूएल टूर्नामेंट के दौरान सुविधाएं भी बेहद खराब थीं। बाला देवी कहती हैं, ‘हमें मैच शुरू होने से दो घंटे पहले मैदान पर पहुंचना होता था और स्टेडियम (अहमदाबाद में) पहुंचने में हमें एक घंटा लग जाता था। इसलिए खिलाड़ियों को सुबह 5 बजे ही स्टेडियम के लिए निकलना होता था।’ कई खिलाड़ियों ने घटिया आवास की भी शिकायत की थी।
कुछ टीमों को वेन्यू से 30 किमी दूर ठहराया गया था। टीम की एक पूर्व खिलाड़ी का कहना है कि मैच गर्मियों में नहीं होने चाहिए थे। डिफेंडर दलिमा छिब्बर कहती हैं, ‘लीग को बेहतर तरीके से आयोजित किया जा सकता था। इस लीग के दौरान खिलाड़ियों पर शारीरिक और मानसिक दबाव बहुत ज्यादा था।’
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