23 मिनट पहले
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फुटबॉल में येलो कार्ड और रेड कार्ड के बारे में तो सभी जानते है। लेकिन, पुर्तगाल की विमेंस लीग में रेफरी ने अपनी जेब से वाइट कार्ड निकाला। यह सफेद कार्ड पुर्तगाल के क्लब बेनफिका और स्पोर्टिंग लिस्बन के बीच महिला कप के क्वार्टर फाइनल मैच के दौरान दिखाया गया। हाफ टाइम के ठीक पहले बेनफिका 3-0 से आगे चल रही थी, उसी समय रेफरी ने व्हाइट कार्ड दिखाने का फैसला किया। कार्ड के निकलते ही स्टेडियम के दर्शकों ने रेफरी का लिए चीयर किया।
पुर्तगाल की रेफरी कैटरीना कैम्पोस ने 45वें मिनट में कार्ड दिखाया।
व्हाइट कार्ड का मतलब क्या है
पुर्तगाल की नेशनल प्लान फॉर एथिक्स इन स्पोर्ट (PNED) ने एक नई पहल की है, इसके मुताबिक वाइट कार्ड फेयर प्ले के लिए दिखाया जाएगा। पुर्तगाल फुटबॉल फेडरेशन ने इस पायलट प्रोजेक्ट को शुरू किया है। जब भी दो टीमें आपस में खेल भावना के साथ खेलेगी, तब रेफरी व्हाइट कार्ड दिखाएंगे।
मैच के दौरान वाइट कार्ड की जरूरत क्यों पड़ी
बेनफिका और स्पोर्टिंग लिस्बन के बीच मैच के दौरान दर्शकों में मौजूद एक फैन बीमार होकर बेहोश हो गया। स्थिति को संभालने के लिए दोनों ओर से टीम की मेडिकल टीम स्टैंड्स पर पहुंची और कुछ ही मिनटों में फैन को मेडिकल ट्रीटमेंट दिया गया। मेडिक्स की तारीफ में रेफरी ने सफेद कार्ड दिखाया। इसके बाद बेनफिका ने पुर्तगाल में एक महिला फुटबॉल खेल के लिए रिकॉर्ड भीड़ के सामने 5-0 से मुकाबला जीत लिया।
रेड कार्ड और येलो कार्ड क्यों मिलता है
1970 फीफा वर्ल्ड कप में आने के बाद, येलो कार्ड और रेड कार्ड दुनिया भर में फुटबॉल का हिस्सा बन गए। जब कोई खिलाडी फाउल करता है तो उस फाउल की गंभीरता को देखते हुए येलो और रेड कार्ड दिखाया जाता है। येलो कार्ड का मतलब चेतावनी होता है। वहीं रेड कार्ड मिलने पर प्लेयर मैच से बाहर हो जाता है और टूर्नामेंट में आगे होने वाले मैच के लिए वो ससपेंड हो जाता है। रेड कार्ड को रेफरी एक बार में भी इस्तेमाल कर सकते है। वहीं अगर किसी प्लेयर को दो येलो कार्ड मिल जाते है, तो वह एक रेड कार्ड के बराबर होता है। बेनफिका और लिस्बन मैच में व्हाइट कार्ड देखकर कई दर्शक कंफ्यूज भी हो गए थे।
इस तरह आया येलो कार्ड और रेड कार्ड का आईडिया
1966 फीफा वर्ल्ड कप में इंग्लैंड और अर्जेंटीना के बीच लंदन के वेम्ब्ली स्टेडियम में क्वार्टर फाइनल हुआ। जर्मन रेफरी रूडोल्फ कैथरीन इस मैच में रेफरी थे। मैच के बाद, समाचार पत्रों की रिपोर्ट में कहा गया कि रेफरी रुडोल्फ क्रेटलीन ने अंग्रेजों बॉबी और जैक चार्लटन को चेतावनी दी थी, साथ ही साथ अर्जेंटीना के एंटोनियो रैटिन को भी भेजा था। जर्मन भाषी होने के कारण रेफरी ने खेल के दौरान अपना निर्णय स्पष्ट नहीं किया था। इसके चलते इंग्लैंड के कोच अल्फेर्डो रामसे ने मैच के बाद स्पष्टीकरण के लिए फीफा ऑफिशियल से बात की और गेम में कार्ड का चलन शुरू हुआ।
कोलंबिया के पूर्व खिलाड़ी जेरार्डो बेडोया को अपने पूरे करियर में सबसे ज्यादा (46) रेड कार्ड मिले हैं।
ट्रैफिक लाइट की तरह कार्ड
इंग्लिश रेफरी केन ऐश्टन के साथ फीफा ने कार्ड रूल बनाया। एश्टन ने महसूस किया कि ट्रैफिक लाइट्स (येलो – चेतावनी, लाल – रुक जाए) पर आधारित कलर कोडिंग कर कार्ड बनाए जाए जो फैसले को स्पष्ट करे। इससे किसी भी देश के रेफरी को भाषा से जुड़ी दिक्कतें नहीं आएंगी और डिसीजन प्लेयर, कोच और दर्शकों स्पष्ट रूप से समझ आएंगे। इसके बाद 1970 फीफा वर्ल्ड कप में कार्ड लाए गए।
वर्ल्ड कप के इतिहास में अब तक सबसे ज्यादा रेड कार्ड (7) मेक्सिको के रेफरी आर्टुरो ब्रिजियो ने दिए है।
वाइट कार्ड के अलावा ये नियम भी
व्हाइट कार्ड के अलावा, पुर्तगाली फुटबॉल ने भी कंकशन सब्स्टिट्यूशन की भी शुरुआत की। अगर एक टीम की सुब्स्टीट्युइशन लिमिट खत्म हो जाती है और टीम के किसी प्लेयर को कंकशन आ जाता है, तो एक एक्स्ट्रा सुब्स्टीट्यूशन मिलेगा।
इसके साथ ही अब पुर्तगाल स्टॉपेज टाइम यानी 90 मिनट के बाद मिलने वाले इंजरी टाइम की अवधि बढ़ाएगी, ताकि जीतने वाली टीम समय बर्बाद नहीं करे। आम तौर पर 3 से 5 मिनट का स्टॉपेज टाइम दिया जाता है, लेकिन अब इसकी अवधि बढ़ने की बात हो रही है। इसकी एक झलक हमे फीफा वर्ल्ड कप में भी देखने को मिली, जहां 15 मिनट तक भी स्टॉपेज टाइम दिया गया।
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