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रोहतक20 मिनट पहले
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सीमा बिस्ला ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली चौथी भारतीय महिला पहलवान बन गई हैं। उन्होंने हाल ही में वर्ल्ड ओलिंपिक क्वालिफायर कुश्ती चैंपियनशिप के दौरान 50 किलोग्राम वेट कैगेटरी में यह उपलब्धि हासिल की है। सीमा ने इस चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता।
उनसे पहले सोनम मलिक, विनेश फोगाट और अंशु मलिक ओलिंपिक कोटा हासिल कर चुकी हैं। रोहतक के गुधन गांव की रहने वाली 28 साल की सीमा ने अपने सफर और संघर्ष को लेकर दैनिक भास्कर के साथ विस्तार से बातचीत की। पेश हैं इंटरव्यू के मुख्य अंश
आप लगातार वेट कैटेगरी चेंज करती रही हैं, ऐसा क्यों?
यह सही बात है। मैंने 2009 में 48 किलो वेट में देश के लिए एशियन चैंपियनशिप में मेडल जीतने में सफलता हासिल की। उसके बाद मैं 67 किलो वेट में शिफ्ट हो गई। फिर 2019 से पहले तक 53 किलो वेट में फाइट करने लगी। सही बताऊं तो मुझे 2018 से पहले तक सही रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं मिला था।
मैं सही मार्गदर्शन के अभाव में 48 से 67 फिर 53 किलो वेट में कुश्ती करने लगी थी, लेकिन रेलवे में नौकरी ज्वॉइन करने के बाद अच्छे कोच की तलाश पूरी हुई। रेलवे के कोच परमजीत यादव ने मुझ पर भरोसा जताया और मुझे प्रेरित किया कि मैं ओलिंपिक में भी मेडल जीत सकती हूं।
उनसे मिलने से पहले तक ओलिंपिक के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी, क्योंकि मैं बड़े टूर्नामेंट में मेडल नहीं जीत पाई थी। परमजीत सर ने मुझे सही डाइट के बारे में बताया। मेरी कमजोरियों को बताया। उनकी सलाह पर मैंने डाइट पर ध्यान दिया और स्ट्रेंथ पर काम किया और सही वेट कैटेगरी की पहचान की।
आप 53 से 50 किलो वेट में क्यों शिफ्ट हुईं?
विनेश फोगाट ने रियो ओलिंपिक में 50 किलोग्राम वेट में देश का प्रतिनिधित्व किया था। इस वेट कैटेगरी में उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स सहित कई बड़े टूर्नामेंट में मेडल जीते, लेकिन 2019 में वर्ल्ड कुश्ती चैंपियनशिप से पहले वे 53 किलो वेट में शिफ्ट हुईं, तो मेरे कोच ने मुझे 50 किलो वेट में शिफ्ट करने का सुझाव दिया।
उनके सुझाव पर इस वेट में मैंने ट्रायल में भाग लिया और वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए इस कैटेगरी में सिलेक्ट हुई। हालांकि मैं वहां ओलिंपिक कोटा हासिल नहीं कर सकी, लेकिन मेरे कोच ने मुझ पर भरोसा जताया और कहा कि मैं इस वेट में ओलिंपिक में मेडल जीत सकती हूं।
आपको वेट चेंज करने पर किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
देखिए जब मैं 53 किलो वेट में थी, मेरा वेट 55-56 होता है। ऐसे में 50 किलो वेट में आने पर मुझे परेशानी का सामना करना पड़ा। इसका खामियाजा मुझे वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन क्वॉलिफायर में उठाना पड़ा। एशियन क्वॉलिफायर से पहले वेट काफी ज्यादा था। कोरोना की वजह से टूर्नामेंट नहीं हो रहे थे। इस कारण मैं कई महीने तक ट्रेनिंग से दूर रही। इसलिए वेट कम करने में परेशानी हुई। अचानक वेट कम करने से मुझे कमजोरी का सामना करना पड़ा। इसका प्रभाव मेरे प्रदर्शन पर भी पड़ा।
आपने कुश्ती की शुरुआत कैसे की और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
मैं रोहतक के गुधन गांव की रहने वाली हूं। मेरे पापा किसान हैं और गांव में 4-5 एकड़ जमीन है। मैं पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं। मुझे स्पोर्ट्स में जाना था। रोहतक स्टेडियम में गई तो मैंने कुछ लड़कियों को कुश्ती करते हुए देखा। मुझे अच्छा लगा। मैं भी करने लगी। घर की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी। फिर मैं रोहतक में बड़ी बहन सुशीला देवी के पास रहने लगी।
दीदी और जीजाजी ने मेरी काफी मदद की और मुझे प्रेरित किया। मेरे परिवार के लोगों ने अपनी हैसियत के मुताबिक मेरा ख्याल रखा और मुझे हर सुविधा उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश की। 2018 में रेलवे में स्पोर्ट्स कोटा के तहत नौकरी लग गई और इस साल मैं रेलवे की नौकरी छोड़कर हरियाणा में स्पोर्ट्स कोटा पर कोच नियुक्त हुई हूं। अब मैं अपनी जरूरत के मुताबिक डाइट और ट्रेनिंग पर खर्च करती हूं।
आपका अगला लक्ष्य क्या है?
मेरा लक्ष्य फिलहाल टोक्यो ओलिंपिक में मेडल जीतना है। मैं टोक्यो में मेडल जीतकर अपने पिता को समर्पित करना चाहती हूं। मेरे पिता दो साल से गले की कैंसर से पीड़ित हैं। मैं ओलिंपिक के बाद कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में भी देश के लिए मेडल जीतना चाहती हूं। क्योंकि मैं कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में मेडल नहीं जीत पाई हूं।
आपने ओलिंपिक की तैयारी के लिए क्या प्लानिंग की है। क्या आप विदेश जाकर ट्रेनिंग करेंगी?
मैं कोच परमजीत यादव के मार्गदर्शन में तैयारी करना चाहती हूं। जैसा मेरे कोच और फेडरेशन प्लान तैयार करेंगे, उसी के मुताबिक मैं ट्रेनिंग करूंगी। फेडरेशन ने मुझ पर पूरा भरोसा जताया है। एशियन क्वॉलिफायर में बेहतर नहीं करने के बाद भी मुझे वर्ल्ड क्वॉलिफायर के लिए भेजा। अगर फेडरेशन का भरोसा मुझ पर नहीं होता, तो मैं ओलिंपिक कोटा हासिल नहीं कर पाती।
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