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- 11 year old Hussain, Living As A Refugee In Germany, Is The Youngest Player In The National Team
जर्मनीएक मिनट पहले
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हुसैन 2022 में वर्ल्ड अंडर-12 चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहे।
11 साल के हुसैन बेसौ जर्मनी की नेशनल चेस टीम के खिलाड़ी हैं। वे नेशनल टीम के सबसे युवा सदस्य हैं, जो जर्मनी का क्रोएशिया में होने वाले मित्रोपा कप में प्रतिनिधित्व करेंगे। हालांकि, हुसैन जर्मन मूल के नहीं हंै। वे चार साल की उम्र में जर्मनी में शरणार्थी के रूप में आए थे। उनके परिवार को 2016 में सीरिया छोड़ना पड़ा था।
हुसैन का परिवार पश्चिम जर्मनी के लिपस्टाट शहर में बस गया। ये बहुत छोटा शहर है। हुसैन के पिता मुस्तफा बेसौ शहर में बसते ही सबसे पहले चार साल के हुसैन के लिए चेस क्लब तलाशने लगे और वहां उनका दाखिला करवाया। क्लब के ट्रेनर ने जल्द ही हुसैन की काबिलियत को पहचान लिया।
हालांकि, चार साल के हुसैन के लिए चेस खेलना उतना मुश्किल नहीं था, जितना जर्मन भाषा बोलना। भाषा न आने की वजह से उन्हें कई अन्य परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। भाषा की वजह से उन्हें क्लब में सिखाया हुआ कुछ समझ नहीं आता था, लेकिन टैलेंट की वजह से 6 साल की उम्र में उन्हें स्टेट लेवल के क्लब में भेजा गया।
हुसैन बेसौ कई टूर्नामेंट जीत चुके हैं।
हुसैन के चेस टीचर एंड्रियास कुहलर बताते हैं कि हुसैन अपने खेल के प्रति बहुत गंभीर और जुझारू हैं। हुसैन ने आठ साल की उम्र में अंडर-10 टूर्नामेंट में पहला स्थान प्राप्त किया। हुसैन 2022 में वर्ल्ड अंडर-12 चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहे।
मुस्तफा बताते हैं कि हुसैन बचपन से ही चेस में दिलचस्पी दिखाने लगा था। मुस्तफा और उनके भाई आपस में चेस खेलते थे। इस दौरान हुसैन ने भी चेस सीखने की जिद की और जल्द ही अपने पिता व उनके भाई को हराने लग गए थे।
मुस्तफा बताते हैं, ‘सीखने के कुछ दिन बाद ही हुसैन हमें बताने लगा कि हम मैच के दौरान क्या गलत कर रहे हैं।’ जर्मनी के नेशनल यूथ ट्रेनर बर्न्ड वोल्कर हुसैन के बारे में बताते हैं कि वो एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं। उन्होंने कहा, ‘हुसैन बहुत जल्दी सीखने वाले खिलाड़ियों में से हैं। वह अविश्वसनीय है।’
मुस्तफा ने बेटे को अलग-अलग टूर्नामेंट में भेजने के लिए क्राउडफंडिंग शुरू की। वे कहते हैं, ‘लोगों को केवल सफलता नजर आती है। उन्हें लगता है कि ये कोई जादू है, लेकिन सफलता पाने के लिए बहुत मेहनत लगती है। साथ ही खर्च भी बहुत होता है।’
वे कहते हैं कि अगर अभी वे सीरिया में रह रहे होते तो उनका बेटा इन ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच पाता। वोल्कर ने हुसैन को क्रोएशिया जाने वाली टीम में चुना है। वोल्कर चाहते हैं कि वहां अपनी उम्र से कई साल बड़े खिलाड़ियों के सामने हुसैन ढेर सारा अनुभव हासिल करे और बहुत कुछ सीख कर आए।
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