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ग्रोथ के साथ महंगाई बढ़ाने वाला बजट: एक्सपर्ट व्यू- जनता को लुभाने वाला नहीं, जोखिम लेने वाला बजट लाई है सरकार; 6 सवाल में जानिए सब कुछ

7 घंटे पहले

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट 2022-23 से आम जनता को बड़ी उम्मीदें थीं। माना जा रहा था कि सरकार पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बजट में कई लुभावनी घोषणाएं कर सकती है। हालांकि अब कहा जा रहा है कि आम आदमी की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं, लेकिन एक्सपर्ट्स इस बजट के बारे में क्या सोचते हैं, यह बेहद अहम है।

इकोनॉमिस्ट स्वामीनाथन अय्यर ने इसे महंगाई बढ़ाने वाला बजट बताया है। उन्होंने कहा है कि जनता को लुभाने की बजाय सरकार रिस्क-टेकिंग बजट लेकर आई है। हालांकि सरकार का टारगेट ग्रोथ को बढ़ावा देना है, लेकिन इसके लिए वह मुद्रास्फीति, यानी महंगाई बढ़ने का रिस्क लेने को तैयार है। अय्यर बिजनेस न्यूज चैनल ET NOW के कंसल्टिंग एडिटर हैं।

आइए 6 सवालों में देखते हैं कि ओवरऑल इस बजट को लेकर उनका क्या व्यू है।

1. क्या यह लोकलुभावन या चुनावी बजट है?
अय्यर ने कहा, यह लोकलुभावन, यानी आम आदमी को खुश करने के लिए लाया गया बजट नहीं है। यह एक रिस्क लेने वाला बजट है, जिसमें निवेश करने पर जोर दिया गया है। मैंने या अन्य लोगों ने जैसी उम्मीद लगाई होगी कि यह चीजों को सस्ता करने वाला बजट होगा, यह वैसा बजट नहीं है।

  • बजट में खेती के लिए कोई खास SOP नहीं है, बल्कि ओवरऑल बेहद मामूली बदलाव किया गया है।
  • टैक्स दरों में कोई खास बदलाव नहीं है, बल्कि निवेश को बढ़ाने के लिए ज्यादा टैक्स कलेक्शन पर जोर दिया गया है।

2. क्या यह महंगाई को बढ़ाने वाला बजट है?
अय्यर के मुताबिक सरकार ने निर्णय लिया है कि वह मुद्रास्फीति बढ़ने, यानी बाजार में महंगाई तेज होने का खतरा उठाने के लिए तैयार है। बजट में फिस्कल कंसोलिडेशन, यानी राजकोषीय घाटे को कम करने की कोशिश नहीं की गई है। सरकार इस बारे में चिंता नहीं कर रही है। इसके उलट वो निवेश पर जोर देने जा रही है, जो कैपिटल एक्सपेंडीचर (पूंजीगत खर्च) का 35% होगा।

3. डिजिटल रुपया आएगा, लेकिन क्या यह लाभदायक होगा?
बजट में सरकार ने अपना डिजिटल रुपया लॉन्च करने की घोषणा की है, लेकिन अय्यर इसे लेकर अभी बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। उन्होंने कहा, डिजिटल रुपया एक नया आइडिया है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह किस तरह का होगा, इसका पेमेंट सिस्टम किस तरह का होगा, इस पर किस तरह का टैक्स लगेगा। यह सब स्पष्ट करना होगा, जो बिल्कुल एक नई बात होगी। हमें अभी इसके बारे में थोड़ा और जानना होगा।

4. ग्रोथ को बढ़ावा देने वाला बजट, लेकिन यह कैसे होगा?
अय्यर ने कहा, यह बजट ग्रोथ को बढ़ावा देने वाला है। सरकार का नजरिया फॉरवर्ड लुकिंग यानी दूरदर्शी है। सरकार खुद निवेश को बढ़ावा देने की कमान संभालेगी और इसके लिए निजी सेक्टर का उपयोग करेगी। यह काम सरकार और निजी सेक्टर के जॉइंट वेंचर्स के जरिए किया जाएगा। टैक्स कलेक्शन से होने वाली आय से खास तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश होगा, जिसमें मेन फोकस रेलवे पर रहेगा। स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जाएगा, डिजिटाइजेशन को बढ़ावा दिया जाएगा।

5. सरकारी एसेट के विनिवेश की बात, लेकिन ये कितना सक्सेसफुल?
अय्यर ने सरकारी एसेट के विनिवेश यानी उसमें निजी सेक्टर को हिस्सेदारी बेचने के दावों पर निराशा जताई। उन्होंने कहा, मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में प्राइवेटाइजेशन की रफ्तार बेहद स्लो रही है। फैक्ट यह है कि सरकार 150 रेलवे ट्रेन, पैसेंजर रूट की नीलामी कर रही थी और कोई बोली लगाने तक नहीं आया। ऐसे में इस तरीके से रेवेन्यू जुटाने की कोशिश बड़े पैमाने पर फेल साबित हुई है, लेकिन इस फेल्योर के बारे में बजट में कुछ नहीं कहा गया।

6. अब RBI पर नजर, कैसी हो सकती है नई क्रेडिट पॉलिसी?
बजट के बाद अब सभी की नजर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पर हैं, जिसे इसी हफ्ते अपनी क्रेडिट पॉलिसी पेश करनी है। अय्यर का मानना है कि RBI की तरफ से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के जोखिम उठाने के फैसले का साथ दिया जाएगा। उन्होंने कहा, एक तरफ RBI ग्रोथ में बेहद सहायक रहा है, दूसरी तरफ कहा जा सकता है कि ऐसा नहीं है। हालांकि शक्तिकांत दास (मौजूदा RBI गवर्नर) के समय में केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति से लड़ाई करने वाले RBI के बजाय ग्रोथ सपोर्टिव RBI रहा है।

देश में महंगाई बढ़ रही है। होलसेल प्राइस (थोक मूल्य) 14% तक बढ़ चुके हैं, जिसका मतलब है कि हम अगले 1 या 2 साल में बहुत बड़ी महंगाई के हालात में आने वाले हैं। मुद्रास्फीति पूरी दुनिया में तेज है। अमेरिका में यह नई ऊंचाई छू चुकी है। फेडरल बैंक (अमेरिका) ने पहले एक साल में तीन बार ब्याज दरें बढ़ने का अनुमान जताया था। अब लोग इसके 4 या 5 बार बढ़ने की बात कर रहे हैं। ऐसे हालात में RBI क्या करेगा?

अय्यर ने कहा, मेरे हिसाब से निर्मला सीतारमण की तरह ही RBI भी रिस्क-टेकर बनेगा। दोनों कहेंगे कि हम ग्रोथ हासिल करने के लिए महंगाई बढ़ने का जोखिम उठाएंगे। हमारा वित्तीय घाटा (fiscal deficit) करीब 6.5% है और ऐसे हालात में मुद्रा नीति बेहद सख्त होनी चाहिए। मैं नहीं सोचता कि ऐसा होने जा रहा है। RBI रिस्क उठाने वाला बनेगा। यदि वे बेहद कसी हुई मुद्रा नीति लाने की कोशिश करते हैं, तो यह असल में महंगाई रोकने में मदद करने के बजाय इकोनॉमी को नुकसान पहुंचाने वाला कदम ही होगा।

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