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मुंबई21 मिनट पहले
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कंपनी ने कहा कि वर्तमान में यह रिटेल मार्केट में 6 लाख रुपए के आसपास बिक रहा है। विशेष रूप से कोविड के रोगियों के लिए विशेष कॉम्बो मोड वाले मिनी वेंटिलेटर की लागत केवल महज 1.5 लाख है
- डॉक्टरों के एक पैनल के साथ मिलकर कंपनी काम करती है
- मिनी वेंटिलेटर की लागत केवल 1.5 लाख रुपए है
कोरोना के समय में जहां इस समय देश में वेंटिलेटर की भारी कमी है, वहीं पुणे की एक कंपनी महज आधे दाम पर आधुनिक वेंटिलेटर को बनाया है। इस वेंटिलेटर की कीमत केवल 6 लाख रुपए है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे ऑक्सीजन की 75% बर्बादी रुकती है।
मेडिकल टेक्नोलॉजी वाली स्टार्टअप कंपनी का प्रोडक्ट
याशका इंफोट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अक्षय सांगवान कहते हैं कि यह एक मेडिकल टेक्नोलॉजी वाली स्टार्ट अप कंपनी है। हमने आधुनिकतम विकसित टेक्नोलॉजी पर आधारित मेडिकल उपकरणों के विकास पर ध्यान दिया है। इसके लिए हमने रिसर्च एंड डेवलपमेंट कंपनी के रूप में शुरुआत की थी। हम डॉक्टरों के एक पैनल के साथ मिलकर काम करते हैं जो हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं।
7 करोड़ रुपए का निवेश
सांगवान के मुताबिक, आज हम इस क्षेत्र में अपनी मैन्युफैक्चरिंग सुविधाओं, सेल्स और सर्विसेज टीम के साथ एक पूर्ण कंपनी के रूप में विकसित हो चुके हैं। 7 करोड़ रुपए का निवेश किया है। जबकि इससे हमें 20 करोड़ रुपए के रेवेन्यू की उम्मीद है। वे बताते हैं कि सामान्य स्थितियों में 10 लाख की रेंज में 5 मोड वाला वेंटिलेटर मिलता है। जबकि हमने 12 मोड वाला एडवांस्ड वेंटिलेटर को डेवलप किया है।
लागत कम करने पर फोकस
उनके अनुसार, चूंकि हमने इलेक्ट्रॉनिक्स और उसके सॉफ्टवेयर्स सहित पूरे प्रोडक्ट को इन-हाउस विकसित किया है, इसलिए हम इसकी लागत कम रख रहे हैं। वर्तमान में यह रिटेल मार्केट में 6 लाख रुपए के आसपास बिक रहा है। विशेष रूप से कोविड के रोगियों के लिए विशेष कॉम्बो मोड वाले मिनी वेंटिलेटर की लागत केवल महज 1.5 लाख है। हमारे क्लिनिकल ट्रायल के दौरान हमने पाया कि सबसे एडवांस्ड वेंटिलेटर भी रोगी के फास्टर रिकवरी केन मामले में इस मशीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं थे।
कम कीमत वाला वेंटिलेटर
सांगवान ने कहा कि यह एक कम कीमत वाला वेंटिलेटर है, जो अस्पताल में बेड के साथ उपलब्ध होना चाहिए। इससे न सिर्फ मरीजों को बहुत तेजी से ठीक करने में मदद मिलती है बल्कि ऑक्सीजन की बर्बादी भी 75 पर्सेंट तक रुक जाती है। यदि कोई रोगी सीधे ऑक्सीजन सिलेंडर या ऑक्सीजन लाइन से जुड़ा हुआ है तो ऑक्सीजन का प्रवाह जारी रहता है।
सांस लेने में कड़ी मेहनत करनी होती है
उन्होंने कहा कि जब कोविड प्रभावित रोगी इस ऑक्सीजन से साँस लेना है उसके फेफड़ों के लिए अतिरिक्त कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। जब मरीज सांस बाहर निकाल रहा होता है तो भी ऑक्सीजन का प्रवाह जारी रहता है। इससे ऑक्सीजन तो बर्बाद होता है साथ ही मरीज के फेफड़ों पर रिवर्स प्रेशर भी डालता है। हमारे वेंटिलेटर ब्रेथ सिग्नेचर टेक्नोलॉजी वाले होते हैं जो तभी ऑक्सीजन रिलीज करता है जब एक मरीज सांस अंदर खींचता है। यह उस समय धीरे से ऑक्सीजन पुश करता है कि फेफड़ों को आसानी से फुलाया जा सके। जब रोगी वेंटिलेटर पर सांस छोड़ते हैं तो यह ऑक्सीजन के प्रवाह को रोक देता है जिससे ऑक्सीजन की बचत भी होती है और रोगी को आराम भी मिलता है।
वे कहते हैं कि लंबे समय में हमारी योजना मेडिकल उपकरणों के रिसर्च पर काम जारी रखने की है। हम भारतीय डॉक्टरों के साथ मिलकर काम करने की भी योजना बना रहे हैं ताकि उनकी आवश्यकताओं को समझा जा सके और भारतीय परिस्थितियों के लिए सही उपकरण का निर्माण किया जा सके।
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