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चंडीगढ़20 मिनट पहले
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पूर्व भारतीय स्प्रिंटर मिल्खा सिंह ने 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक में भाग लिया। इसके लिए उन्हें भारत सरकार ने 2001 में पद्मश्री से सम्मानित किया था।
कोरोना पॉजिटिव पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह की फिर से हालत खराब हो गई है। उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरता जा रहा था। इस कारण 91 साल के मिल्खा सिंह को PGIMER के कोविड अस्पताल के ICU में भर्ती कराया है। जहां उनकी हालत फिलहाल स्थिर बनी हुई है। यह जानकारी चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के प्रवक्ता प्रोफेसर अशोक कुमार ने दी।
मिल्खा सिंह और 82 वर्षीय पत्नी उनकी पत्नी निर्मल कौर पिछले हफ्ते ही कोरोना पॉजिटिव हुए थे। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तीन पहले ही परिवार की बात पर अस्पताल से छुट्टी हुई थी। तब से उनका घर पर ही क्वारैंटाइन में इलाज चल रहा था। हालत खराब होने पर उन्हें फिर से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। मिल्खा सिंह के बेटे जीव दुबई में रहते हैं। वे घर लौट आए हैं। निर्मल कौर भारतीय वॉलीबाल टीम की पूर्व कप्तान रही हैं।
पाकिस्तान में हुआ था जन्म
20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) के एक सिख परिवार में मिल्खा सिंह का जन्म हुआ था। खेल और देश से बहुत लगाव था, इस वजह से विभाजन के बाद भारत भाग आए और भारतीय सेना में शामिल हो गए। कुछ वक्त सेना में रहे लेकिन खेल की तरफ झुकाव होने की वजह से उन्होंने क्रॉस कंट्री दौड़ में हिस्सा लिया। इसमें 400 से ज्यादा सैनिकों ने दौड़ लगाई। मिल्खा 6वें नंबर पर आए।
भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया
1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलिंपिक खेल में भाग लिया। कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन आगे की स्पर्धाओं के रास्ते खोल दिए। 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 और 400 मीटर में कई रिकॉर्ड बनाए। इसी साल टोक्यो में आयोजित एशियाई खेलों में 200 मीटर, 400 मीटर की स्पर्धाओं और राष्ट्रमंडल में 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीते। उनकी सफलता को देखते हुए, भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।
इस तरह मिला फ्लाइंग सिख नाम
मिल्खा सिंह पाकिस्तान में आयोजित एक दौड़ के लिए गए। इसमें उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। उनके प्रदर्शन को देखकर पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘द फ्लाइंग सिख’ नाम दिया। 1960 को रोम में आयोजित समर ओलिंपिक में मिल्खा सिंह से काफी उम्मीदें थीं। 400 मीटर की रेस में वह 200 मीटर तक सबसे आगे थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी गति धीमी कर दी। इससे वह रेस में पिछड़ गए और चौथे नंबर पर रहे। 1964 में उन्होंने एशियाई खेल में 400 मीटर और 4×400 रिले में गोल्ड मेडल जीते।
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