स्पोर्ट्स डेस्क3 मिनट पहलेलेखक: राजकिशोर
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पापा वेलडिंग का काम करते थे, हमारा बड़ा परिवार था। हम 5 भाई-बहन हैं। मम्मी और पापा को मिलाकर घर में 7 लोग थे। पापा को वेल्डिंग से इतना पैसा नहीं मिलता था कि हम लोगों को एक टाइम का भरपेट खाना मिल सके। इसलिए मैंने खेल सेंटर पर जाना शुरू किया, ताकि अगर मेरा चयन किसी खेल में हो जाए तो मुझे भरपेट खाना तो मिलेगा। अगर कुछ अच्छा कर देता हूं तो बाद में सरकारी नौकरी भी मिल जाएगी, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।
यह कहानी है 60 किलो वेट में बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए चुने गए जूडो खिलाड़ी विजय यादव की। विजय कई प्रतियोगिताओं में मेडल जीत चुके हैं और इस बार विजय से पूरे देश को गोल्ड की उम्मीद हैं।
दैनिक भास्कर ने इस खिलाड़ी से बातचीत की है। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल: आपने जूडो की शुरुआत कैसे की?
जवाब: मुझे जूडो जैसे खेल के बारे में पता नहीं था। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि हमारे पापा के लिए हम सभी के लिए एक टाइम का संतुलित भोजन की व्यवस्था करना भी मुश्किल था। मुझे सिर्फ इतना पता था कि अगर मैं कोई भी खेल खेलता हूं और मेरा चयन यूपी सरकार के खेल एकेडमी में हो जाता है तो मुझे भरपेट खाना तो मिलेगा। आगे चलकर सब कुछ अच्छा रहा तो नौकरी भी मिल जाएगी।
इसी मन के साथ मैं बनारस में साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ) के सेंटर पर जाना शुरू किया। वहां पर मुझे जूडो के बारे में पता चला। बाद में मेरा चयन जूडो खेल के आवासीय सेंटर में हो गया।
सवाल: आप कितने भाई-बहन हैं, और आपके पापा क्या करते हैं?
जवाब: हम तीन भाई और दो बहन है। मेरे पापा वेल्डिंग का काम करते थे। उन्हीं की कमाई से हमारा सात लोगों के परिवार का खर्च चलता था। पापा को जो थोड़े-बहुत पैसे मिलते, उसी से राशन आता था। खेल ने मुझे इन मुश्किलों से बाहर निकाला है, अब देश के लिए कुछ करना है।
सवाल: आप अब कॉमनवेल्थ गेम्स में देश की ओर से खेलेंगे, यहां तक पहुंचने में आपको किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?
जवाब: घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा खराब थी। सेंटर पर जाने के लिए ऑटो या गाड़ी से जाने तक का किराया भी नहीं था। सेंटर मेरे गांव से करीब 10 से 15 किलोमीटर दूर था। मैं सेंटर पर जाने के लिए कभी साइकिल वाले से तो कभी अन्य वाहनों से लिफ्ट लेता था। कई बार तो पैदल ही जाना पड़ जाता था तो कई बार कुछ किलोमीटर के लिए कोई लिफ्ट दे देता था। यही रोज की कहानी थी। बाद में मेरा चयन आवासीय सेंटर पर हो गया। जिसके बाद मुझे हर तरह की सुविधा मिलने लगी।
सवाल: कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर किस तरह की तैयारी है, सरकार से किस तरह का सपोर्ट मिल रहा है?
जवाब: अभी हम लोग जुलाई के दूसरे हफ्ते में यूरोप में चैंपियनशिप खेलने के साथ-साथ ट्रेनिंग कर के एक महीने के बाद लौटे हैं। दिल्ली में हमारा कैंप लगा है। यहां पर हमें हर प्रकार की सुविधा मिल रही है। यूरोप में ट्रेनिंग और चैंपियनशिप में भाग लेने का हमें कॉमनवेल्थ गेम्स में भी जरूर फायदा मिलेगा।
सवाल: आपको कॉमनेवल्थ गेम्स में किस खिलाड़ी से चुनौती मिल सकती है?
जवाब: मेरे वेट में इंग्लैंड का जूडो प्लेयर है, जिससे मुझे पार पाना होगा। अगर मैं इससे जीत लेता हूं तो मैं मेडल तक का सफर अवश्य तय कर लूंगा।
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