16 घंटे पहले
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कहते नहीं, बताते भी नहीं, लेकिन देश के मध्यम और निम्न मध्यम श्रेणी के लोग महंगाई से परेशान तो हैं। एक सर्वे आया है। पीडब्ल्यूसी ग्लोबल कंज्युमर इनसाइट्स पल्स सर्वे। इसके मुताबिक़ छोटे ही नहीं, बड़े शहरों के लोग भी अगले छह महीने तक खर्च को लेकर चिंतित रहेंगे। इसके अनुसार 74 प्रतिशत भारतीय निजी खर्च कम करने और बचत को बढ़ाने के लिए लालायित हैं।
इन ग़ैर ज़रूरी खर्च के बारे में लोगों ने बताया कि रेस्त्रां में डिनर, कंज्युमर इलेक्ट्रॉनिक्स की ख़रीदी, फ़ैशन, पर्यटन और ग़ैर ज़रूरी-महँगी ग्रॉसरी में अब वे निश्चित तौर पर कटौती करने वाले हैं। इसका उल्टा परिणाम भी सर्वे में देखने को मिला है। युवा अपने पर्यटन में कोई कमी नहीं करना चाहते। दूसरी तरफ़ एक दिलचस्प ट्रेंड यह भी है कि संपन्न लोग भी स्वदेशी की तरफ़ आ रहे हैं।
हाल ही में एक मीटिंग में RBI गवर्नर ने महंगाई को लेकर कहा था कि ये अभी भी RBI के टारगेट के ऊपर बनी हुई है।
वे देश में बन रहे प्रोडक्ट्स को ख़रीदने में रुचि दिखा रहे हैं। सर्वे में शामिल 47% लोगों ने कहा वे अब ऐसी जगह ख़रीदारी करेंगे, जहां उन्हें क़ीमतों में छूट मिलेगी। 45% ने कहा कि वे प्रीमियम फ़ोन जैसे प्रोडक्ट तभी ख़रीदेंगे जब उन पर स्पेशल ऑफ़र चल रहे हों। वर्ना नहीं ख़रीदेंगे। कुछ लोग खर्च कम करने के लिए चीजों को बल्क में ख़रीदने और अपेक्षाकृत सस्ते ब्रांड की तरफ़ जाने को भी तैयार हैं।
यह सही है कि कोरोना के वक्त कई तरह की आफ़त झेल चुके लोगों में बचत के प्रति रुचि बढ़ी है। हालाँकि छह महीने बाद यह रुचि बदल भी सकती है, लेकिन धीरे- धीरे फिर से कोरोना की आहट बढ़ रही है। इसे देखते हुए लोग सचेत रहना चाहते हैं। धीरे-धीरे ही सही, पड़ोसी को दिखाने के लिए लोन लेकर घी पाने वाली आदतें आम आदमी छोड़ रहा है।
सिर्फ गेहूं ही नहीं, दालें भी महंगी हो गई हैं। पिछले एक महीने के अंदर खास कर तुअर की कीमत में 5 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
धनी-मनी लोगों का स्वदेशी की तरफ़ आकर्षित होना भी अच्छा संकेत है, लेकिन मध्यम वर्ग महंगे पेट्रोल और गैस सिलेंडर से परेशान तो है। वैसे पैसा चुकाते वक्त उसे इसका फ़र्क़ नज़र नहीं आता होगा क्योंकि ज़्यादातर पेमेंट ऑनलाइन हो रहा है, लेकिन महीने के अंत में आख़िर बैंक अकाउंट भी तो कुछ कहता ही होगा!
महंगाई की इस चिंता के बीच सिर पर खड़े चुनाव इसे और बढ़ाने वाले हैं। चार राज्यों के चुनावों के दौरान बाज़ार में जब बेहिसाब करोड़ों रुपया आएगा तो महंगाई तो बढ़नी ही है। आम आदमी के पहुँच की चीजें महँगी हो जाएगी। मज़दूरी भी बढ़ जाएगी। मज़दूरी बढ़ी तो फसल कटाने से लेकर मकान बनवाने तक हर चीज महँगी हो जाएगी। चुनाव का पैसा आख़िर हिसाब-किताब का मोहताज तो होता नहीं।
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