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- Demand Under MGNREGA Highest In Seven Years, Reverse Migration May Be The Main Reason
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16 घंटे पहले
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- इस साल अप्रैल में 2.6 करोड़ परिवार और 3.7 करोड़ लोग ढूंढ रहे थे काम
- सिर्फ 1.52 करोड़ परिवारों और 2.07 करोड़ लोगों को काम मिल पाया
- पिछले साल से 91% ज्यादा परिवारों और 85% ज्यादा लोगों को जरूरत थी
अप्रैल यानी मौजूदा वित्त वर्ष के पहले महीने में मनरेगा के तहत काम मांगने वालों में परिवारों और लोगों की संख्या पिछले सात साल में सबसे ज्यादा रही। गांवों में काम की मांग बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कोविड के चलते मार्च-अप्रैल के दौरान बड़ी संख्या में मजदूरों की घर वापसी हो सकती है।
अप्रैल में 2.6 करोड़ परिवार और 3.7 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे थे
मनरेगा के डैशबोर्ड से मिली जानकारी के मुताबिक, इस साल अप्रैल में 2.6 करोड़ परिवार और 3.7 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे थे। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो पिछले साल से 91% ज्यादा परिवारों और 85% ज्यादा लोगों को रोजगार की जरूरत थी। दो साल पहले यानी अप्रैल 2019 में दो करोड़ परिवार और तीन करोड़ लोग इस ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत काम तलाश रहे थे।
सिर्फ 1.52 करोड़ परिवारों और 2.07 करोड़ लोगों को काम मिल पाया
इसका नेगेटिव पहलू यह है कि इस रोजगार गारंटी योजना के तहत काम मांगने वाले हर शख्स को काम नहीं मिल पाया। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले महीने सिर्फ 1.52 करोड़ परिवारों और 2.07 करोड़ लोगों को ही काम मिल पाया था। यानी मनरेगा में रोजगार मांगने वाले हर 100 परिवार में से सिर्फ 58 और हर 100 लोगों में 56 को ही काम मिला। इसी तरह अप्रैल में मनरेगा के तहत 18.87 करोड़ श्रम दिवस (एक व्यक्ति के लिए इतने दिन का काम) का काम हुआ। औसत के हिसाब से देखें तो जिन परिवारों को काम मिला वे सिर्फ 12.41 दिन काम कर पाए।
मनरेगा में काम की मांग देती है शहरों और गांवों में बेरोजगारी का अंदाजा
जानकारों के मुताबिक, मनरेगा के तहत रोजगार की मांग से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में कितनी बेरोजगारी है। इससे इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि लेबर मार्केट में छुपी हुई बेरोजगारी कितनी है। मनरेगा के तहत रोजगार की मांग में तेज उछाल आने की वजह एक बार फिर लोगों की गांव-घर वापसी का दौर शुरू होना और वहां खेती किसानी के अलावा दूसरे काम का अभाव होना है।
पिछले वित्त वर्ष 7.56 करोड़ परिवारों और 11.19 करोड़ लोगों को काम मिला
अगर पिछले वित्त वर्ष की बात करें तो उसमें मनरेगा के तहत 7.56 करोड़ परिवारों और 11.19 करोड़ लोगों को काम मिला और कुल 389.31 करोड़ श्रमिक दिवस का काम हुआ। इस हिसाब से रोजगार पाने वाले हर परिवार को एक साल में औसतन 51.51 दिन का काम मिला।
मनरेगा कानून के तहत एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिन के रोजगार की व्यवस्था
गौरतलब है कि मनरेगा कानून के तहत एक वित्त वर्ष में हर उस ग्रामीण परिवार को कम से कम 100 दिन का रोजगार मुहैया कराने की व्यवस्था की गई, जिसके वयस्क सदस्य अपनी मर्जी से शारीरिक मेहनत वाला काम करने को तैयार हों। लेकिन यह मकसद कभी पूरा नहीं हो पाया।
सरकार इस वित्त वर्ष में मनरेगा के तहत खर्च करेगी 73,000 करोड़ रुपए
गौरतलब है कि सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए मनरेगा के तहत 73,000 करोड़ रुपए खर्च करना तय किया है। सरकार ने 2020-21 में 1.11 लाख करोड़ रुपए जबकि 2019-20 में 68,265 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया था।
पिछले हफ्ते शहरी इलाकों में बेरोजगारी का आंकड़ा 7.72% से 9.55% पर पहुंचा
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक, 25 अप्रैल को खत्म हफ्ते में गांवों में बेरोजगारी का आंकड़ा मामूली बढ़त के साथ 6.37% रहा। 28 मार्च को खत्म हफ्ते में उनकी बेरोजगारी का आंकड़ा 6.18% था। लेकिन इस दौरान शहरी इलाकों में बेरोजगारी का आंकड़ा तेज उछाल के साथ 7.72% से 9.55% पर पहुंच गया।
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