नई दिल्ली38 मिनट पहले
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वित्त वर्ष 2021-22 (FY22) में भारत की रियल GDP 9.2% की दर से बढ़ेगी, जबकि पिछले वित्त वर्ष में इसमें 7.3% का कॉन्ट्रेक्शन देखने को मिला था। शुक्रवार को सरकार ने अनुमानित आंकड़े जारी किए हैं। सरकार की ओर से जारी अनुमानित आंकड़ें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की ओर से जारी आंकड़ों से कम है।
रिजर्व बैंक ने दिसंबर 2021 में हुई मॉनिटरी पॉलिसी मीटिंग में 9.5% की ग्रोथ का अनुमान लगाया था। सरकार टैक्स कलेक्शन और राजकोषीय घाटे के अनुमानों जैसे महत्वपूर्ण आंकड़ों की गणना के लिए बजट से पहले GDP अनुमान जारी करती है।
नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (NSO) की ओर से जारी किए आंकड़ों के मुताबिक, ग्रॉस वैल्यू ऐडेड (GVA) का FY22 में 8.6% की दर से बढ़ने का अनुमान है। FY21 में इसमें 6.2% का कॉन्ट्रेक्शन देखा गया था।वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी 20.1% और दूसरी तिमाही में 8.4% बढ़ी।
FY22 में एग्रीकल्चर के 3.9% की दर से बढ़ने की संभावना है। FY21 में यह 3.6% की दर से बढ़ा था। वहीं मैन्युफैक्चरिंग के 12.5% की दर से बढ़ने का अनुमान जताया गया है जिसमें FY21 में 7.2% का कॉन्ट्रेक्शन देखा गया था।
GDP क्या है?
GDP इकोनॉमी की हेल्थ को ट्रैक करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे कॉमन इंडिकेटर्स में से एक है। GDP देश के भीतर एक स्पेसिफिक टाइम पीरियड में प्रड्यूज सभी गुड्स और सर्विस की वैल्यू को रिप्रजेंट करती है। इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां प्रोडक्शन करती हैं उसे भी शामिल किया जाता है। जब इकोनॉमी हेल्दी होती है, तो आमतौर पर बेरोजगारी का लेवल कम होता है।
दो तरह की होती है GDP
GDP दो तरह की होती है। रियल GDP और नॉमिनल GDP। रियल GDP में गुड्स और सर्विस की वैल्यू का कैल्कुलेशन बेस ईयर की वैल्यू या स्टेबल प्राइस पर किया जाता है। फिलहाल GDP को कैल्कुलेट करने के लिए बेस ईयर 2011-12 है। यानी 2011-12 में गुड्स और सर्विस के जो रेट थे उस हिसाब से कैल्कुलेशन। वहीं नॉमिनल GDP का कैल्कुलेशन करेंट प्राइस पर किया जाता है।
कैसे कैल्कुलेट की जाती है GDP?
GDP को कैल्कुलेट करने के लिए एक फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है। GDP=C+G+I+NX, यहां C का मतलब है प्राइवेट कंजम्पशन, G का मतलब गवर्नमेंट स्पेंडिंग, I का मतलब इन्वेस्टमेंट और NX का मतलब नेट एक्सपोर्ट है।
GVA क्या है ?
ग्रॉस वैल्यू ऐडेड यानी जीवीए, साधारण शब्दों में कहा जाए तो GVA से किसी अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल आउटपुट और इनकम का पता चलता है। यह बताता है कि एक तय अवधि में इनपुट कॉस्ट और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने रुपए की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हुआ। इससे यह भी पता चलता है कि किस खास क्षेत्र, उद्योग या सेक्टर में कितना उत्पादन हुआ है।
नेशनल अकाउंटिंग के नजरिए से देखें तो मैक्रो लेवल पर GDP में सब्सिडी और टैक्स निकालने के बाद जो आंकड़ा मिलता है, वह GVA होता है। अगर आप प्रोडक्शन के मोर्चे पर देखेंगे तो आप इसको नेशनल अकाउंट्स को बैलेंस करने वाला आइटम पाएंगे।
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