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- Tokyo Paralympics 2020 Nishad Kumar Wins Silver T 47 Category In Men’s High Jump Said This Medal Dedicated To Parents; They Got Here By Working
टोक्यो43 मिनट पहले
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हिमाचल के ऊनी के रहने वाले निषाद कुमार ने T47 कैटगिरी के हाई जंप में 2.06 मीटर की जंप के साथ भारत को दूसरा मेडल दिलाया। इससे पहले व्हीलचेयर टेबल टेनिस में भाविनाबेन पटेल ने सिल्वर मेडल जीता। निषाद कुमार से भास्कर ने उनके यहां तक के सफर और भविष्य की योजनाओं को लेकर बातचीत की। निषाद ने यह मेडल अपने मजदूर माता-पिता को समर्पित किया है।
निषाद कहते हैं कि उनके माता-पिता ने दूसरों के खेतों में काम करके यहां तक पहुंचाया है। इसलिए यह ओलिंपिक मेडल अपने माता-पिता को समर्पित करते हैं। क्योंकि उनके त्याग के बिना यहां तक का सफर संभव नहीं था। प्रस्तुत है निषाद से बातचीत के प्रमुख अंश
टोक्यो में जीते मेडल किसे समर्पित करना चाहते हैं और इसका श्रेय किसे देते हैं?
टोक्यो में मेडल जीतने का पूरा श्रेय अपने माता-पिता और अपने कोच सत्यनारायण को दूता हूं। यह मेडल अपने पिता- रसपाल सिंह और माता पुष्पा देवी को समर्पित करता हूं। क्यो में मेडल जीतने का पूरा श्रेय अपने माता-पिता और अपने कोच सत्यनारायण को दूता हूं। यह मेडल अपने पिता- रसपाल सिंह और माता पुष्पा देवी को समर्पित करता हूं।
क्योंकि मेरे माता-पिता ने दूसरों के खेतों में काम करके मुझे और मेरी बड़ी बहन को पाला। हम दोनों को भर-पेट खिलाकर खुद ही भूखा सोया। हम दोनों को स्कूल भेजा, ताकि हम पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
क्या आप शुरू से दिव्यांग हैं?
मैं शुरु से दिव्यांग नहीं हूं। मैं हिमाचल के ऊना का रहने वाला हूं। 2007 में जब मैं चौथी क्लास में था, तो घास काटने वाली मशीन से मेरा दाहिना हाथ कट गया।
आप खेल में कैसे आए?
मैं जब स्कूल में था, तो मैं स्कूल में सामन्य वर्ग के बच्चों के साथ भाग लेता था। 2009 में सामान्य वर्ग में स्कूली स्तर पर हाईजंप में मेडल जीता। 2018 में मुझे कॉलेज में आने के बाद पैरा गेम्स के बारे में पता चला, उसके बाद मैं पैरा नेशनल चैंपियनशिप में भाग लिया और मेडल जीता। उसके बाद मैं नेशनल कैंप के लिए सिलेक्ट हुआ और साईं बैंगलुरु में कोच सत्यनारायण सर के पास अभ्यास कर रहा हूं।
आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
जी जब मेरा हाथ कट गया, तो उसके बाद लड़के मुझे चिढ़ाते थे। तब मुझे काफी बुरा लगता था। मेरे माता-पिता मुझे समझाते थे कि इसे अपनी कमजोरी मत बनने दो।वहीं घर की माली हालत भी काफी खराब थी, ऐसे में ट्रेनिंग के लिए मेरे पास अच्छं जूते और जेवलिन तक नहीं था। मेरे पास किट भी नहीं होता था। कई बार हमें बड़ी मुश्किल से भरपेट खाना मिल पाता था।
क्योंकि हमारे पास ज्यादा खेत नहीं थे, और माता-पिता दोनों दूसरों के खेत में मजदूरी करते थे और उससे ही घर का खर्चा चलता था। कई बार खेती का सीजन नहीं होने पर काम नहीं मिल पाता था, तब हमें बिना खाए भी सोना पड़ा।
आपका अगला टारगेट क्या है?
मेरा अगला टारगेट एशियन गेम्स और वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देश के लिए मेडल जीतना है। मैं 21 साल का हूं और 2024 पैरालिंपिक्स में भी भाग ले सकता हूं। ऐसे में मेरा पूरा फोकस 2024 पैरालिंपिक्स गेम्स में अपने प्रदर्शन में सुधार करना है, ताकि देश के लिए एक और मेडल जीत सकूं।
हिमाचल से सामान्य वर्ग में शूटर विजय कुमार ने ओलिंपिक में मेडल जीते चुके हैं, उसके बाद आपने जीता है। क्या आपको लगता है कि वहां पर खेल को बढ़ावा मिलेगा?
मुझे लगता है कि टोक्यो में मेरे मेडल जीतने के बाद पहाड़ी इलाके वाले राज्यों हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर के दूर-दराज के गांवों के पैरा एथलीट प्रेरित होंगे और वह भी देश के लिए मेडल जीतने के लक्ष्य को लेकर खेलों में आएंगे।
मुझे उम्मीद है कि हिमाचल सरकार भी दूर-दराज इलाकों में खेल को बढ़ावा देने को लेकर कदम उठाएगी।
आपको लगता है कि टोक्यो में मेडल जीतने के बाद आपके जीवन शैली में सुधार होगी?
मुझे भरोसा है कि टोक्यो में मेडल जीतने के बाद मुझे भी सामान्य वर्ग के खिलाड़ियों की तरह स्पोर्ट्स कोटे से कहीं न कहीं जॉब मिल जाएगा। मैं अभी ग्रेजुएशन कर रहा हूं और बैंगलुरु के साईं सेंटर में अभ्यास करता हूं।
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