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टीनशेड से कटा था एक हाथ, दूसरे से जीता मेडल: पैरालिंपियन सुंदर गुर्जर ने टोक्यो में 64.01 मीटर भाला फेंक जीता ब्रॉन्ज, गांव के लोगों ने मिठाई बांटी, पटाखे जलाकर खुशियां मनाई

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करौलीएक घंटा पहले

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भाला फेंकते सुंदर गुर्जर।

करौली जिले के रहने वाले पैरालंपिक खिलाड़ी सुंदर गुर्जर ने जापान के टोक्यो में 64.01 मीटर जेवलिन थ्रो कर ब्रॉन्ज मेडल जीत लिया है। सुंदर गुर्जर की इस सफलता से परिजन और गांव में खुशी का माहौल है। सुंदर गुर्जर के मेडल जीतते ही परिजन और ग्रामीणों ने एक-दूसरे को मिठाई बांटकर जीत की बधाइयां दी और पटाखे जलाकर खुशी का इजहार किया। सुंदर गुर्जर के पैतृक गांव देवलेन में ग्रामीण सुबह से ही टीवी के सामने बैठ गए थे। टीवी पर सुंदर गुर्जर का प्रदर्शन देखने के साथ ही ग्रामीण और परिजन पैरालंपिक में सफलता के लिए भजन-कीर्तन व पूजा-पाठ करते रहे। लोग सुंदर गुर्जर के प्रदर्शन को लेकर उत्साहित नजर आ रहे थे। सुंदर के बड़े भाई हरिओम गुर्जर और बृजेश गुर्जर ने खुशी जताई और कोच व देशवासियों का आभार जताया है।

सुंदर गुर्जर के घर के बाहर जुटे लोग एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हुए।

सुंदर गुर्जर 2015 तक सामान्य वर्ग की प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेते थे, लेकिन एक दुर्घटना में उनके बाएं हाथ की कलाई कट गई, इसके बाद से गुर्जर अब एफ-46 भाला फेंक श्रेणी में भाग लेते हैं। खेल में विश्व रिकॉर्ड 63.97 मीटर था, लेकिन ट्रेनिंग में उनका स्कोर 68-70 मीटर के बीच रहा है। उन्होंने 16वीं सीनियर नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप के दौरान 68.42 मीटर भाला फेंक नेशनल रिकॉर्ड बनाया था। सुन्दर गुर्जर ने आखिरी प्रतियोगिता 2019 में दुबई वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लिया था। जहां उन्होंने टोक्यो 2021 के लिए क्वालिफाई किया था। 2016 में वह दुर्भाग्यशाली रहे जब ओलंपिक से कॉल रूम में लेट एंट्री के चलते बाहर हो गए थे। गौरतलब है कि गुर्जर को रियो पैरालंपिक में टॉप करने के बावजूद बिना मेडल के ही घर जाना पड़ा था। उन्होंने अनाउंसमेंट कॉल सुनने में 52 सेकंड देर कर दी थी। इस कारण उन्हें इवेंट से डिस्क्वालिफाई घोषित कर दिया गया था।

विश्व चैंपियनशिप में दो बार जीता गोल्ड
रियो में हुई घटना के बाद भी सुंदर के कदम नहीं डगमगाए। इसके अगले वर्ष लंदन में हुई वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन थ्रो एफ-46 में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीता। सुंदर ने इस दौरान 60.36 मीटर के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। 2019 में दुबई में हुई वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी गोल्ड जीता। वर्ष 2019 में केंद्र सरकार की ओर से अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा एशियन पैरा गेम्स में सिल्वर एवं ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके हैं। 2018 में महाराणा प्रताप पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं।

सुंदर के घर के बाहर बैठे ग्रामीण।

बचपन से ही निशानेबाजी में रुचि
सुंदर के पिता कल्याण गुर्जर खेती-बाड़ी और भैंस चराते हैं। मां कलियां घर एवं खेती का काम संभालती हैं। तीन बहन-भाइयों में सबसे छोटे सुंदर शुरू से खेलो में रुचि रखते थे। उनकी मां ने बताया कि खेलों में रुचि के कारण गांव में अक्सर निशानेबाजी के दौरान ग्रामीण महिलाओं के सिर पर रखे पानी के बर्तनों को फोड़ देते थे। इसकी शिकायत हमें रोज मिलती थी। पिता ने बताया कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई है। खेलों में रुचि को देखते हुए सरकारी विद्यालय में शारीरिक शिक्षक हुकम सिंह ने सुंदर को ट्रेनिंग देना शुरू किया।

ट्रेनिंग के दौरान संसाधन व पैसों के अभाव के कारण गांव में रिश्तेदार, विद्यालय व अन्य दानदाताओं ने मदद की। साथ ही उनके पिता जमीन व ट्रैक्टर गिरवी रखकर पैसों का इंतजाम करते थे। 2007 में उन्होंने राज्य स्तरीय शार्ट पुट प्रतियोगिता गोविंदगढ़ जयपुर में भाग लिया और सिल्वर मेडल जीता। जिसके बाद उसी वर्ष उनका चयन नेशनल प्रतियोगिता केरेल के एर्नाकुलम में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लिया और रजत जीता बने। इस तरह नेशनल प्रतियोगिताओं का सिलसिला चलता रहा।

महावीर सिंह ने वर्ल्ड लेबल कॉम्पिटिशन के लिए तैयार किया
जयपुर के प्रसिद्ध कोच महावीर सिंह के संपर्क में आए और उन्होंने विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए तैयार किया। उन्हीं की मेहनत का परिणाम है कि 2016 में उन्होंने ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन दुर्भाग्यवश एक दिन अपने दोस्त के घर गए। जहां आंधी में घर के आगे लगी टीनशेड उड़ कर सुंदर के ऊपर आ गिरी। इस हादसे में उनका बायां हाथ कट गया। इसके बाद उन्होंने पैरालंपिक प्रतियोगिता में भाग लिया और विजेता बन कर उभरे।

उनके परिजनों ने खुशी व्यक्त की और कहा कि वह बस यही चाहते हैं कि उनका बेटा इसी तरह जिले, प्रदेश और देश का नाम रोशन करें और आगे बढ़े। सुंदर के उनके चचेरे भाई भी अब डिस्क थ्रो की तैयारी के लिए जुटे हुए हैं और जयपुर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। साथ ही गांव के अन्य युवा भी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं और खेलों में कैरियर बनाने की तैयारियां कर रहे।

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