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- The Family Members Who Lost In The Close Match With The Indonesian Player Said: There Was Full Hope Of Medal, Reaching This Point In The First Time Was A Big Success
हिसार16 मिनट पहले
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27 वर्षीय भारतीय शटलर तरुण ढिल्लों एक छोटे से गांव से निकलकर टोक्यो पैरालिंपिक तक पहुंचे और दुनिया को अपने हुनर का परिचय दिया। हालांकि पैरालिंपिक में वे पदक जीतने से चूक गए, लेकिन वे निराश नहीं हैं, बल्कि और उत्साह के साथ अगले पैरालिंपिक की तैयारियों में जुटने की इच्छा उन्होंने जताई। उनका जज्बा देखकर उनके परिजनों और पत्रकारों ने भी उन्हें प्रोत्साहित किया।
इंडोनेशिया के खिलाड़ी फ्रेडी सेतियावान के साथ रविवार सुबह 7 बजे हुए मुकाबले में तरुण ढिल्लों ने काफी संघर्ष किया। 32 मिनट तक मुकाबला चला, लेकिन वे पदक से एक कदम दूर रह गए। फ्रेडी के साथ नजदीकी मुकाबले में तरुण ने 21-17, 21-11 से मैच गवां दिया। इस हार के बाद तरुण की कांस्य पदक जीतने की उम्मीद भी खत्म हो गई है। लेकिन तरुण हतोत्साहित नहीं हुए।
हालांकि परिजन थोड़ा निराश हैं, लेकिन उनको तरुण द्वारा की गई मेहनत व उसके हौंसले पर नाज है। तरुण के नाना सज्जन पूनिया व मां सुलोचना कहती हैं कि मेडल नहीं जीता कोई बात नहीं। हमें अपने बेटे पर गर्व है और उसका वहां तक पहुंचना ही बहुत बड़ी बात है। एक छोटे से गांव से निकलकर जापान के टोक्यो में ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेना और पहले ही प्रयास में सेमीफाइनल तक पहुंचना बड़ी उपलब्धि है। इस खेल से तरुण को काफी कुछ सीखने को मिला। उम्मीद है कि इसका फायदा अगले पैरालिंपिक में जरूर मिलेगा।
तरुण ढिल्लों का मुकाबला देखते परिजन।
संघर्षों से भरा रहा तरुण का सफर
पैरा शटलर तरुण ढिल्लों का पैरालिंपिक तक का सफर काफी संघर्षों भरा रहा है। तरुण के पिता सतीश कुमार का बीमारी के कारण स्वर्गवास हो गया था। लेकिन नाना सातरोड कलां वासी सज्जन पूनिया ने अपने दोहते का हर मुसीबत में साथ दिया। उन्होंने ही तरुण को इस मुकाम तक पहुंचने में सहयोग किया। मूल रूप से फतेहाबाद के नहला गांव वासी तरुण ढिल्लों फिलहाल हिसार के सातरोड कलां गांव में अपने नाना के पास रहते हैं। उसके नाना सज्जन पूनिया बताते हैं कि तरुण बचपन से ही हमारे पास रहता है। जब वह छोटा था तो उसके पिता सतीश कुमार को अधरंग हो गया था। इसके बाद वे ठीक ही नहीं हो पाए और उनकी मृत्यु हो गई। तरुण की तीन बहनें हैं और वह सबसे छोटा है।
सज्जन पूनिया ने बताया तरुण के पिता की मृत्यु होने के बाद पूरा परिवार बहुत ही शोकाकुल हो गया था। छोटे-छोटे बच्चों की ओर देखकर आंखें भर आती थीं। छोटे बच्चों को और तरुण की मां को हौंसला देने के लिए उन्हें अपना दर्द भुलाना पड़ा। सुलोचना पर ज्यादा बोझ न पड़े इसलिए वह दोहते तरुण को अपने पास सातरोड गांव ले आए थे। तभी से वह उनके पास रह रहा है। धीरे-धीरे समय बीतता गया, तरुण की मां ने भी अपने बच्चों को हिम्मत करके पढ़ाया। तरुण के नाना ने सज्जन सिंह ने बताया कि आज उन्हें बहुत ही खुशी हुई कि उनके दोहते तरूण ने उनके परिवार, हिसार व हरियाणा का नाम पूरे विश्व में नाम रोशन किया है।
भारतीय पैरा शटलर तरुण ढिल्लों।
2004 में तरुण के पैर में लगी थी चोट
तरुण के पिता सतीश कुमार डेयरी चलाते थे और साथ ही क्रिकेट खेलते थे। अपने पिता को देखकर ही तरुण ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। लेकिन 2004 में क्रिकेट खेलते समय तरुण के दाहिने पैर में चोट लग गई थी। तरुण का एक बार हिसार व दूसरी बार दिल्ली एम्स में ऑपरेशन करवाया गया, लेकिन करीब 8 महीने तक चले इलाज के बाद भी पैर ठीक नहीं हो पाया। इसके बाद तरुण ने क्रिकेट छोड़कर बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया।
तरुण की मां सलोचना ने अपने बेटे को हौंसला दिया व एक पैर कमजोर होने के बाद तरुण को बैडमिंटन खेलने की सलाह दी। इसके बाद 2013 में तरुण ने जर्मनी में वर्ल्ड एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। 2019 और 2020 में भी चैंपियनशिप में तरुण ने भाग लिया था, लेकिन घुटने की चोट के कारण उसे गेम से बाहर कर दिया गया था। अब तरुण का लक्ष्य टोक्यो पैरालिपिंक में मेडल जीतना था, लेकिन वह आखिरी पायदान पर पहुंचकर चूक गया।
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