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- Analyst Said After Nuclear Deal, It Will Take Months For Iranian Oil To Come In The Market, Russia Also Placed A Condition
नई दिल्ली7 घंटे पहले
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ईरान की न्यूक्लियर डील के क्लाइमैक्स पर पहुंचने की खबरों की वजह से क्रूड ऑयल के दामों में मामूली गिरावट आई थी। उम्मीद की जा रही थी कि 2015 की डील के रिवाइव होने से ईरान पर लगे प्रतिबंध हट जाएंगे और वो दोबारा क्रूड ऑयल की सप्लाई कर सकेगा।
लेकिन अब खबर आ रही है कि ईरान के तेल को मार्केट में आने में टाइम लग सकता है। ऐसे में क्रूड ऑयल फिर से 120 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया है। क्रूड शुक्रवार को भी दिन में 120 डॉलर तक पहुंच गया था, लेकिन शाम को न्यूक्लियर डील की खबरों के कारण ये 110 के करीब आ गया था।
क्रूड ऑयल का भाव 120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुका है
एनालिस्ट का कहना है कि अगर अगले हफ्ते भी डील फाइनल हो जाती है तब भी ईरान के ऑयल को मार्केट तक आने में मई से जून तक का समय लग सकता है। इसके बाद क्रूड सस्ता हो सकता है। जब 2015 में प्रमुख वर्ल्ड पावर्स और तेहरान के बीच पहली डील हुई थी, उस समय प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटाने में छह महीने का समय लग गया था।
यूनाइटेड नेशन के वैरिफिकेशन के बाद ही पाबंदिया हटी थी। वहीं एनालिस्ट का यह भी कहना है कि दुनिया भर के ज्यादातर रिफाइनर कई सालों से ईरानी ऑयल नहीं ले रहे हैं और ईरान से इंपोर्ट को फिर से शुरू में 2-3 महीनों की जरूरत होगी।
भारत को भी सस्ता कच्चा तेल मिलने में समय लगेगा
इसका मतलब है कि अगर भारत भी ईरान से तेल खरीद दोबारा शुरू करता है तो उसे सस्ता तेल मिलने में महीनों का समय लगेगा। 2018 तक भारत ईरान से ऑयल इंपोर्ट में नंबर दो पर था। अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण भारत ने ईरान का सस्ता तेल खरीदना बंद कर दिया। इससे पेट्रोल-डीजल के साथ अन्य चीजें महंगी हो गई।
न्यूक्लियर डील पर रूस की शर्त
ईरान की न्यूक्लियर डील में रूस की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए रूस, अमेरिका से गारंटी की मांग कर रहा है कि उसपर लगाए प्रतिबंध ईरान के साथ उसके व्यापार में बाधा नहीं डालेंगे। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शनिवार को कहा था, ‘हमने लिखित गारंटी मांगी है कि हाल के घटनाक्रम के कारण लगाई पाबंदियां किसी भी तरह से ईरान के साथ उसके फ्री और फुल ट्रेड, इकोनॉमिक और इन्वेस्टमेंट कॉपरेशन और मिलिट्री-टेक्निकल कॉपरेशन के हमारे अधिकार को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। रूस की इस मांग को एक वेस्टर्न सीनियर ऑफिशियल ने संभावित जाल कहा।
ईरान के फ्लोटिंग स्टोरेज में 100 मिलियन बैरल
डेटा फर्म केप्लर का अनुमान है कि फरवरी के मध्य तक ईरान के पास फ्लोटिंग स्टोरेज में 100 मिलियन बैरल थे, जिसका मतलब है कि यह लगभग तीन महीनों के लिए प्रति दिन 1 मिलियन बैरल (BPD) सप्लाई कर सकता है। ये ग्लोबल सप्लाई का 1% है। डील के बाद ईरान ने अपने उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई है, लेकिन एनालिस्ट का कहना है कि ईरान को 1 मिलियन से 1.3 मिलियन BPD तक पहुंचने में 3 से 6 महीने लग सकते हैं। उत्पादन में बढ़ोतरी इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़े निवेश पर निर्भर करता है।
फ्लोटिंग प्रोडक्शन स्टोरेज एंड ऑफलोडिंग (FPSO) ऑफशोर ऑयल फील्ड के पास स्थित एक फ्लोटिंग वेसल को कहते हैं, जहां तेल को प्रोसेस और स्टोर किया जाता है जब तक कि इसे ट्रांसपोर्टिंग और एडिशनल रिफाइनिंग के लिए टैंकर में ट्रांसफर नहीं किया जाता।
रूस-यूक्रेन जंग से बढ़े क्रूड के दाम
24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर रूस के आक्रामण के तुरंत बाद दुनियाभर के शेयर बाजार धराशाई हो गए, सोने की कीमतें बढ़ गई और क्रूड ऑयल रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया। रूस ऑयल और नेचुरल गैस का बड़ा उत्पादक है। BP स्टैटिकल रिव्यू के अनुसार 2020 में रूस क्रूड ऑयल और नेचुरल गैस कंडेनसेट के उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर था। इस दौरान रूस ने प्रति दिन 10.1 मिलियन बैरल का उत्पादन किया। रूस के आक्रामण के कारण कई पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए है। इसी वजह से क्रूड की आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता है और दाम लगातार बढ़ रहे हैं।
क्या है ईरान की न्यूक्लियर डील?
साल 2015 में ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी के साथ अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर डील की थी। इस डील के तहत ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को सीमित करने के बदले उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में छूट दी गई थी। हालांकि, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस डील के आलोचक थे। उनका कहना था कि प्रतिबंध हटने से ईरान के पास काफी पैसा आ गया है। इन पैसों से आतंकवाद की फंडिंग होगी।
इस वजह से मई 2018 में ट्रंप ने अमेरिका को इस डील से अलग कर लिया। कई आर्थिक पाबंंदियां लगा दी। जंग जैसे हालात पैदा हो गए। इसका असर ईरान की इकोनॉमी के साथ-साथ भारत और अन्य देशों पर भी पड़ा। 2018 तक भारत ईरान से ऑयल इंपोर्ट में नंबर दो पर था। अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण भारत ने ईरान का सस्ता तेल खरीदना बंद कर दिया। इससे पेट्रोल-डीजल के साथ अन्य चीजें महंगी हो गई।
दुनिया का चौथा बड़ा तेल भंडार ईरान के पास
ईरान के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल भंडार है। देश की इकोनॉमी ऑयल पर काफी ज्यादा निर्भर करती है। ईरान के ऑयल मिनिस्टर जवाद ओवजी ने गुरुवार को कहा था कि न्यूक्लियर डील के बाद एक या दो महीने के भीतर हाईएस्ट ऑयल कैपेसिटी तक पहुंच जाएगा। चीन को बढ़ते एक्सपोर्ट और प्रतिबंधों के हटने की उम्मीद में भी ईरान पिछले छह महीनों में धीरे-धीरे उत्पादन बढ़ा रहा है।
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