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अर्थशास्त्री जिम रिकर्ड्स की राय: दुनिया में अभी सोने से बेहतर कोई निवेश नहीं; 2025 तक सोने के दाम 10 गुना बढ़ सकते हैं

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न्यूयॉर्क16 घंटे पहले

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अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट ने शुक्रवार को बेरोजगारी के आंकड़े जारी किए। मार्च की तुलना में एक तरफ तो रेस्त्रां और दुकानों में काम करने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं। दूसरी ओर 98 लाख लोग अब भी बेरोजगार हैं। अमेरिकी एजेंसी CIA के पहले वित्तीय जासूस के रूप में मशहूर अर्थशास्त्री और बेस्ट सेलर किताब ‘द न्यू ग्रेट डिप्रेशन’ के लेखक जिम रिकर्ड्स कहते हैं कि यही स्थिति विश्व की अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर दिखाती है। उनका कहना है कि दुनिया गहरी मंदी में है और आम आदमी को आर्थिक तंगी से बचना है तो सोने, कैश और बॉन्ड का सहारा लेना होगा। दैनिक भास्कर के रितेश शुक्ल ने उनसे विशेष बातचीत की। पेश हैं संपादित अंश…

भारत दुनिया को मंदी से उबारने में मदद करेगा; अमेरिका में तो लोग सरकारी भत्तों की वजह से बेरोजगार रहना चाह रहे

जब सारे अर्थशास्त्री तेज रिकवरी की बात कर रहे हैं तो आप डिप्रेशन की भविष्यवाणी किस आधार पर कर रहे हैं?
अर्थशास्त्री गलत हैं। इतिहास बताता है कि वैश्विक महामारी का आर्थिक असर तीन दशक तक रहता है। अभी लोग पैसा खर्च करने से बच रहे हैं इसलिए आज अमेरिका में बचत की दर 15% है। जबकि पिछले दस साल का औसत मात्र 5-8% ही रहा है। दुनिया भर की सरकारें गहरे कर्ज में डूबी हैं। अमेरिकी सरकार का कर्ज GDP की तुलना में 130% पर आ गया है।

भारत समेत कई बड़े देशों का आंकड़ा 90% को छू रहा है जबकि 60% लक्ष्मण रेखा है। दुनिया में 80% अंतरराष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है। उन देशों को मुश्किल होगी जहां डॉलर रिजर्व मुद्रा है। डॉलर का मूल्य घटता है तो इन देशों के लिए आयात महंगा होगा। यानी मंदी।

कौन से देश इस मंदी से आसानी से उबर पाएंगे?
बूढ़ी होती जनसंख्या की वजह से लैटिन अमेरिका, यूरोप, जापान और चीन के लिए परिस्थिति विकट होगी। भारत दुनिया को मंदी से उबारने में मदद करेगा क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के कारण आर्थिक विकास यहां औरों की तुलना में तेज होगा। दूसरे, यहां लोग सोने के शौकीन हैं जो कि मंदी में उपयोगी साबित होगा।

सोने में ऐसी क्या खास बात है?
डॉलर का मूल्य घटे तो सोने का बढ़ता है। 1971 में सोना करेंसी से मुक्त हुआ और 1980 तक सोने के दाम 2000% बढ़ गए। ये सोने का पहला बुल मार्केट था। 1999 से 2011 तक चले दूसरे बुल मार्केट में सोने के दाम 670% बढ़ गए। दोनों बार सोना औसत 15 गुना बढ़ा। तीसरा बुल मार्केट 2015 में शुरू हो गया है। 2025 तक सोना 10 गुना तो बढ़ेगा ही।

इस मंदी का एहसास कब होना शुरू होगा?
जब शेयर बाजार गिरने लगें और सोना बढ़ने लगे, तब मंदी का एहसास होने लगेगा। रोजमर्रा के सामान में महंगाई लॉकडाउन के बाद दिखेगी। जब डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं मिलेगी। 2022 आते-आते यह परिस्थिति बन चुकी होगी।

क्या कोई और ठोस मापदंड है जिसके कारण सोने की कीमत बढ़ सकती है?
बिल्कुल है। दुनिया भर में कुल 34 हजार मीट्रिक टन के आसपास सोना है। अगर दुनिया भर में 75% GDP वाले देशों की कुल मुद्रा को जोड़ लें और 34,000 मीट्रिक टन से भाग दे दें, तो आसानी से एक तोला सोने का दाम मौजूदा 1770 डॉलर प्रति तोला से उछलकर 15,000-20,000 डॉलर छू सकता है।

दिक्कत के समय में अमेरिका के पास सीमित उपाय ही हैं। या तो वो दिवालिया घोषित हो जाए, जो वो होगा नहीं। ऐसे में वो बढ़ी ब्याज दर पर कर्ज लेगा, जिसका मतलब है डॉलर का मूल्य घटेगा। लिहाजा अमेरिकी डॉलर और यूरो की तुलना में सोना महंगा होगा। 2025 तक डॉलर का मूल्य 10-15 गुना घटेगा और इसी अनुपात में सोना बढ़ेगा।

…तो क्या हर व्यक्ति को सोना खरीदना चाहिए?
जी हां, और खरीदकर अपने पास रखना चाहिए। अगर सरकार कमजोर साबित हुई तो वो जनता का सोना अधिग्रहित कर सकती है। अगर जनता को अपनी सरकार पर भरोसा न हो तो उसे सोना लॉकर में न रख कर अपने पास रखना चाहिए, ताकि कभी भी इस्तेमाल कर सके। अगर सरकार समझदार होगी तो वो जनता को भी सोना रखने देगी और खुद भी इसका भंडारण करेगी। भारत में सरकारें जनता से सोना छीनने की गलती कभी नहीं करेंगी क्योंकि ऐसी सरकारें ढह जाएंगी।

बिटकॉइन के बारे में आपकी क्या राय है?
ब्लॉकचेन और क्रिप्टोकरेंसी का चलन बढ़ सकता है। संभव है कि केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी के नाम पर क्रिप्टोकरेंसी लॉन्च कर दें। ऐसे में खतरा व्यावसायिक बैंकों पर आ जाएगा, क्योंकि उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग जाएगा। बिटकॉइन एक जुआ है और इससे ज्यादा कुछ नहीं। कुछ जुए लंबे समय तक चल जाते हैं। किसी भी मुद्रा को मुद्रा बॉन्ड बनाता है। बिटकॉइन का बॉन्ड बाजार बन जाएगा, यह असंभव है।

अमेरिका में बेरोजगारी आसानी से कम नहीं होगी?
कोरोनाकाल में 7 करोड़ नौकरियां अकेले अमेरिका में गई हैं, लेकिन 10% लोग भी नौकरी में नहीं लौटे। यहां सरकार लोगों को साल के 50,000 डॉलर तक की सहायता दे रही है, जबकि उनकी औसत आय 28,000 डॉलर थी। अत: कई लोग नौकरी ढूंढ ही नहीं रहे हैं। इन्हें भी जोड़ें तो अमेरिका में बेरोजगारी 11% के ऊपर होगी, जो 6.1% बताई जा रही है।

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